Saturday, October 8, 2011

Hindi Short Story Hirni By M.Mubin

कहानी हिरनी लेखक एम. मुबीन
जब वह घर से निकली तो 9 बज रहे थे । तेज लेकल ट्रेन तो मिलने से रही, धीमी लेकल से ही जाना पडेगा । वह भी समय पर मिल गई तो ठीक! वरना यह तय है कि आज फिर वह देरी से आफिस पहुंचेगी और आफिस लेट पहुंचने का आर्थ ?
इस विचार से ही उसके मथे पर बल पड गए और भावें तन गई, आखों के सामने बास का चेहरा घूम गया और कानों में उसकी गरजदार आवाज गूंजने लगी ।
‘‘मिसेज महात्रे आप आज फिर लेट आई है ? मेरे बार बार कहने पर भी आप लेट आती है आपकी इस ढिटाई पर मुझे गुस्सा आता है । आपको शर्म आनी चाहिए बार बार ताकीद करने पर भी आप वही हरकत करती है । आज के बाद मैं आपके साथ कोई भी रियायत नहीं बरतूंगा ?’’
कोई उससे टकराया और उसके विचारों की ढ़ाॄंखल फ्रांग हो गई ।
वह सडक पर थी भी और यातायात भारी सडक उसे पार करनी थी इसलिए होश में रहना बहुत जरूरी था । मस्तिष्‍क कहीं और हो, मन कहीं और ऐसे में सडक पार करने का आर्थ किसी दुर्घटना को निमंत्रण देना जो उससे टकराया वह तो हीं दूर चल गया । उसके उससे इस तरह टकराने परभी उसे उस टकराने वाले पर कोई क्रोधनहीं आया । अच्‍छा हुआ वह उससे टकरा गया उसके विचारों की ढ़ाॄंखल तो टूटी और वह होश की दुनिया में वापस आ गई वरना तनाव में वह इन्ड़ाीं विचारों में खोई रहती और उसी आवस्था में सडक पार करने का प्रयत्न करती औऱ किसी दुर्घटना का शिकार हो जाती ।
उसने चारों ओर चौकन्ना होकर देखा सडक की ओर गाडियाँ इतनी दूर थी कि वह आसानी से सड़क पार कर सकती थी । सिग्नल तक रूकने का आर्थ था स्वयं को और दो चार मिनट लेट करना । इस विचार के मस्तिष्‍क में आते ही उसने सडक पार करने का निर्णय कर लिया और दौडती हुई सडक की दूसरी ओर पहुंच गई । दोनों ओरसे आने वाली गाडियां उसके कापकी समीप हो गई थी । जरा सी देरी या सुस्‍ती दुर्घटना का कारण बन सकती थी । परंतु इसके लिए उसने अपने आपको पूरी तरह तैयार कर लिया था कोई दुर्घटना हो इस बात का पूरा ध्यान रखा था । सडक पार करके उसने उस तंग सी गली में प्रवेश किया जिसे पार करने के बाद रेलवे स्टेशन की सीम आरंभा होती थी । गली में कदम रखते ही उसके दिल की घडकने तेज हो गई, सांसे फूलने लगीं और मथे पर पसीीने की बूंदे उभर आई ।
उसने हाथ के रूमल से मथे पर आई पसीने की बूंदे सापक कीं और फूली हुई सांसों पर नियंत्रण पाने का प्रयत्न करने लगी । परंतु उसे पता था ना तो वह फूली हुई सांसों पर नियंत्रण पा सकेगी ना दिल के धडकने की गाति सामन्य कर सकेगी ।
मस्तिष्‍क में क्राोटा का विचार जो आ गया था । उसे पूरा विश्वास था गली के बीच उस पान की दुकान के पास वह कुर्साी लगाकर बैठा होगा उसे आता देक्रा भाद्दे आंदाज मे वाक़्य उछाल गा । क्राोटा की यह दिनचर्या थी । सुबह शाम वह उसी जगह उसकी राह देक्राता था । उसे पता था सवेरे वह कब आफिस जाती है और शाम को कब आफिस से घर लौटती है । उसके आने जाने का और रेलवे स्टेशन से घर के लिए आने का दूसरा कोई रास्ता नहीं था ।
एक और रास्ता है परंतु वह इतना लंबा रास्ता है कि उस रास्ते से जाने की कोई कल्‍पना भी नहीं कर सकता है । इसालिए क्राोटा उसी रास्ते पर बैठा उसकी राह देक्राता रहता है और उसे देक्राते ही कोई भाद्दा सा वाक़्य हवा में उछालता है ‘‘हाय डार्लींग ! बहुत अच्‍छी लग रही हो, यह आफिस, नौकरी वोकरी छोडो मुझे क्राुश किया करो..... हर महीने इतने पैसे दिया करूंगा जो नौकरी से तीनचार महिनों मे भी नहीं मिलते ड़ोंगे । आओ आज किसी होटल में चलते है आज शेरेटान होटल में पहल ही से अपना एक कमरा बुक है । नौकरी करते हुए जिंदगी भर शेरेटान होटल का दरवाजा भी नहीं देख पाओगी । आज हमरे साथ उसमें दिन गुजार कर देख ले ।’’
खोटा के हर वाक़्य के साथ उसे अनुभव होता एक भाल आकर उसके मन में चुभा गया है । दिल की धडकनें तेज हो जाती थीं और आंखो के सामने आंधकार सा छाने लगता था । तेज चलने के प्रयत्न में कदम लडखडाने लगते थे परंतु वह पूरी शाएिक़्त लगाकर तेज तेज चलने का प्रयत्न करते खोटा की आखों से ओझल हो जाने का प्रयत्न करती थी ।
खोटा उस क्षेत्र का मना हुआ गुंडा था उसे क्षेत्र का बच्चा बच्चा उससे पारिचित था शराब, जुए, वेश्याओं के आड्डे चलना, हपक़्ता वसूली, सुपारी, आगवा, हत्या, मरपीट इत्या. हर तरह के काम वह करता था । इस प्रकार के कामें में ऐसा कोई काम नहीं था जो वह ना करता था ।
जो चाहता था कर जाता था । कभी पुलिस की गिरपक़्त में नहीं आता था । यदि किसी ममले में फंस भी गया तो उसकी पहुंच, प्रभाव के कारण पुलिस को उसे दो दिनों मे ही छोडना पडता था ।
उस खोटा का दिल उस पर आ गया था । उस पर ! उस मया महात्रे पर, एक छोटे से निजी आफिस में छोटा सा काम करने वाली, एक बच्चे की मं पर ।
पहले तो खोटा उसे सिर्फ घूरा करता था । फिर जब उसे उसके आने जाने का समय और रास्ता मलूम हो गया तो वह प्राति दिन उसे उस रास्ते पर मिलने लगा । रोज उसे देखकर मुस्काता और उस पर गंदे वाक़्य कसता । खोटा की इन हरकतों से वह आतंकित सी हो गई थी । उसे यह आनुमन तो हो गया था खोटा के मन में क़्या है और उसे पूरा विश्वास था जो खोटा के मन में है खोटा उसे एक दिन जरूर पूरा करेगा ।
इस कल्‍पना से ही वह कांप उठती थी । यदि खोटा ने अपने मन की बात पूरी कर डाली, या पूरी करने का प्रयत्न किया तो ? इस कल्‍पना से ही उसकी जान निकल जाती थी ।
‘‘नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता.... यदि खोटा मे मेरे साथ ऐसा कुछ किया तो मैं किसी को मुंह दिखाने के योग्य नहीं रहूंगी ....’’
उसे इस बात का पता था वह इतनी सुंदर है कि खोटा जैसे लेग उसे देखकर बहक सकते है । दूसरे हजार लेग उसे देखकर ऐसा कोई विचार अपने मन में लते तो उसे कोई परवाह नहीं होती क़्योंकि उसे विश्वास था वे कभी भी अपने उस ऐसे वैसे विचार को पूरा करने का साहस नहीं कर सकते थे ।
परंतु खोटा ! हे भागवान ! जो सोच ले दुनिया की कोई भी शाएिक़्त उसे अपने सोचे हुए काम से रोकने का प्रयत्न नहीं कर सकती थी । वह आते जाते खोटा की कल्‍पना से आतंकित रहती थी और उस दिन तो खोटा ने सारी सीमए तोड डाली थी । ना केवल उसके रास्ता रोक कर खडा हो गया था बालिक उसकी कलई भी पकड ली थी ।
‘‘बहुत आकडती हो, अपने आपको क़्या समझती हो ? तुम्‍हें पता नहीं तुमहारा पाल खोटा से पडा है । ऐसी आकड निकालूंगा कि जिंदगी भर याद रखोगी । सारी आकड भूल जाओगी ।’’
‘‘छोडो मुझे’’ उसकी आखों में भाय से आंसू आ गए और वह खोटा के हाथों से अपनी कलई छुडाने का प्रयत्न करने लगी । परंतु वह किसी शेर के चंगुल में फंसी हिरनी सी स्वयं को अनुभव कर रही थी ।
खोटा भायानक आंदाज में हंस रहा था और वह उसके हाथों से अपनी कलई छुडाने का प्रयत्न करती रही ।
इस दृश्य को देखकर एक दो रास्ता चलने वाले राही भी रूक गए । परंतु खोटा पर नजर पडते ही वे तेजी से आगे बढ गए ।
दानवी हंसी हंसता हुआ खोटा, उसकी विवशता से आनंदित हो रहा था । फिर हंसते हुए उसने धीरे से उसका हाथ छोड दिया ।
वह रोती हुई आगे बढ गई ।
खोटा का दानवी आट्टाहास उसकी पीछा करता रहा । वह रोती हुई स्टेशन आई और लेकल ट्रेन में बैफ़्कर सिसकती रही ।
उसे रोता देखकर आसपास के यात्री उसे आश्चर्य से देख रहे थे ।
आफिस पहुंचने तक रो रोकर उसकी आंखे सूूझ गई थी । उसमे आया पारिवर्तन आफिस वालों से छिप ना सका ।
उसे आफिस की सड़ेलियों ने घेर लिया
‘‘क़्या बात है मया ? यह तुमहारा चेहरा क़्यों सूझा हुआ है ? आंखे क़्यों लल है ?’’
उसने कोई उत्तर नहीं दिया और उनसे लिपटकर दहाडे मर मरकर रोने लगी ।
वह सब भी घबरा गई और उसे सांत्वना देते हुए चुप कराने का प्रयत्न करने लगी । बडी मुश्किल से उसके आंसू रूके और उसने पूरी कहानी उन्‍हे सुना दी ।
इससे पूर्व भी वह कई बार उन्‍हे खोटा की हरकतों के बारे में बता चुकी थी । परंतु उन्‍हों इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया था ।
‘‘नौकरी करने वाली स्त्रियों के साथ तो यह सब होता ही रहता है ! मेरा स्वयं एक प्रेमी है जो अंधेरी से चर्नाी रोड तक मेरा पीछा करता है ।’’
‘‘मेरे भी एक आशिक साहब है, सवेरे शाम मेरे मेहलले के नुक़्कड पर मेरा इंतेजार करते रहते है ।’’
‘‘और मेरे आशिक साहब तो आफिस के गिर्द मंडलते रहते है.. आओं बताती हूं सडक पर खडे टिकाटिकती लगाए देख रहे ड़ोंगे ’’
‘‘आगर खोटा तुम पर आशिक हो गया है तो यह, यह कोई चिन्ता की बात नहीं है, तुम चीज ही ऐसी हो कि तुम्‍हारे तो सौ दो सौ प्रेमी हो सकते है।’’
उनकी बातें सुनकर वह झूंझल जाती ।
‘‘तुम लेगों को मजाक सूझा है और मेरी जान पर बनी है । खोटा एक गुंडा है, बदमश है । वह ऐसा सबुकछ कर सकता है जिसकी कल्‍पना भी तुम्‍हारे प्रेमी लेग कर नहीं सकते है ।’’
परंतु उस दिन की खोटा की यह हरकत सुनकर सब सन्नाटे मे आ गई थी ।
‘‘क़्या तुमने इस बारे में अपने पाति को बताया है ?’’
‘‘नहीं आजतक कुछ नहीं बताया है । सोचती थी कोई हंगाम ना खडा हो जाए ।’’
‘‘तो अब पहली फुर्रसत में उसे सबुकछ बता दो ।’’
उस शाम वह नित्य के रास्ते से नहीं, लांबे रास्ते से घर गई और विनोद को सबुकछ बता दिया कि खोटा इतने दिनों से उसके साथ क़्या कर रहा था और आज उसने उसके साथ क़्या हरकत की ।
उसकी बातें सुनकर विनोद का चेहरा तन गया ।
‘‘ठीक है ! फिलहाल तो तुम एक दो दिन आफिस मत जाओ । उसके बाद सोचेंगे क़्या करना है ।’’
उसके बाद वह तीन दिन आफिस नहीं गई ।
एक दिन वह बालकनी में खडी थी आचानक उसकी नजर नीचे गई और उसका दिल धक से रह गया । खोटा नीचे खडा उसकी बालकनी को घूर रहा था । उससे नजर मिलते ही वह दानवी आंदाज में मुस्काने लगा और वह तेजी से भीतर आ गई ।
रात विनोद घर आया तो उसने आज की घटना बताई उस घटना को सुनकर विनोद ने अपने होठ फ्रोंच लिए । दूसरे दिने आफिस जाना बहुत जरूरी था। इतने दिनों तक वह सूचना दिए बिना आफिस से गैर हाजिर नहीं रह सकती थी ।
‘‘आज मैं तुमको स्टेशन तक छोडने आऊंगा ।’’ विनोद ने कहा तो उसकी हिममत बंधी ।
विनोद उसे स्टेशन तक छोडने आया । जब वह गली से गुजरे तो पान स्टाल के पास खोटा मौजूद था ।
‘‘क़्यों जाने मन ! आज बाडी गार्ड साथ लई हो, तुम्‍हें अच्‍छी तरह मलूम है कि इस तरह के सौ बाडी गार्ड मेरा कुछ नहीं बिगाड सकते ।’’
पीछे से आवाज आई तो उस आवाज को सुनकर क्रोधमें विनोद मुडा परंतु उसने उसे थाम लिया ।
‘‘नहीं विनोद, यह गुंडो से उलझने का समय नहीं है’’ और वह विनोद को लगभाग खेंचती स्टेशन की ओर बढ गई ।
फिर शाम वापसी के लिए उसने लांबा रास्ता अपनाया परंतु उसकी कालेनी के गेट के पास पहुंचते ही उसका मन धक से रह गया ।
खोटा गेट पर उसकी राह देख रहा था ।
‘‘मुझे आनुमन था कि तुम वापस उस रास्ते से नहीं आओगी । इसलिए तुमहारी कालेनी के गेटपर तुम्‍हें सलाम करने आया हूं । काश तुम मुझसे पकरार हासिल कर सको ।’’
यह कहता हुए खोटा उसे सलाम करता आगे बढ गया ।
रात विनोद को उसने सारी कहानी सुनाई तो विनोद बोल
‘‘कल यदि खोटा ने तुम्‍हें छेडा तो हम उसके विरूद्ध पुलिस में शिकायत करेंगे ।’’
दूसरे दिन विनोद उसे छोडने के लिए आया तो खोटा से फिर आमना सामना हो गया । खोटा की गंदी बाते विनोद सहन नहीं कर सका और उससे उलझ गया ।
विनोद ने एक मुक़्का खोटा को मरा, उत्तर में खोटना ने विनोद के मुंह पर ऐसा वार किया कि उसके मुंह से खून बहने लगा ।
‘‘बाबू । खोटा से आच्छे आच्छे तीस मरखा नहीं जीत सके तो तुमहारी हैसीयत ही क़्या है ।’’
घायल विनोद ने आफिस जाने के बजाए पुलिस स्टेशन जाकर खोटा के विरूद्ध शिकायत करना जरूरी समझा ।
थाना प्रमुख ने सारी बातें सुनकर कहा
‘‘ठीक है हम आपकी शिकायत लिख लेते है, परंतु हम खोटा के विरूद्ध ना तो कोई सख्त कार्यवाही कर पाएंगे और ना कोई मजबूत केस बना पाएंगे । क़्योंकि कुछ घंटो में खोटा छूट जाएगा और संभाव है छूटने के बाद खोटा तुमसे इस बात का बदल भी ले । वैसे आप डारिए नहीं हम खोटा को उसके किए की सजा जरूर देंगे ।’’ पुलिस स्टेशन से भी उन्‍हे निराशा ही मिली ।
उस दिन दोनों आफिस नहीं गए ।
तनाव में बिना एक दूसरे से बात किए घर में ही टहलते रहें ।
शाम को उसने पुलिस स्टेशन पकोन लगाकर अपनी शिकायत पर की जानेवाली कार्यवाही के बारे में पूछा
‘‘मिस्टर विनोद, थाना प्रमुख ने कहा, आपकी शिकायत पर हमने खोटा को स्टेशन बुलकर ताकीत दी है यदि उसने दोबारा आपकी पत्‍नी को छेडा, आपसे उलझने की कोशिश की तो उसे आंदर डाल देंगे ।’’
दूसरे दिन दोनों साथ आफिस जाने के लिए निकले, उस स्थान पर फिर खोटा से सामना हो गया जहा नित्य होता था ।
‘‘वाह बाबू वा ! तेरी तो बड़ूत पहुंच है । खोटा से भी ज्यादा, तेरी एक शिकायत पर पुलिस ने खोटा को बुलकर ताकीद की, और सिर्फ ताकीद की है ना, अब की बार खोटा ऐसा कुछ करेगा कि पुलिस को तुमहारी शिकायत पर खोटा के विरूद्ध कार्यवाही करनी पडेगी ...’’
‘‘खोटा हम शरीपक लेग है । हमरी इज्जत हमें अपनी जान से ज्यादा प्यारी है और उस इज्जत की रश के लिए हम अपनी प्राण दे भी सकते है ! इसीलिए भालई इसी मे है कि तुम हम शरीपक लेगों को परेशान मत करो । तुम्‍हारे लिए और भी हजारों औरते दुनिया में है । तुम कीमत आदा करके मन चाही सभी प्राप्त कर सकते हो, फिर क़्यों मेरी पत्‍नी के पीछी पडे हो ?’’ विनोद बोल ।
‘‘मुश्किल यही है बाबू खोटा का दिल जिस पर आया है वह उसे पैसों के बल पर नहीं मिल सकती, उसे उसकी शाएिक़्त के बल पर ही मिल सकती है’’
‘‘कमीने मेरी पत्‍नी की ओर आंख भी उठाई तो मैं तेरी जान ले
लूंगा...’’ यह कहते हुए विनोद खोटा पर झपटा और उस पर बे तहाशा घूसें बरसाने लगा ।
हक़्का बक़्का खोटा विनोद के वार से स्वयं को बचाने का प्रयत्न करने लगा । आचानक रास्ता चलते कुछ लेगों ने विनोद को पकड लिया, कुछ ने खोटा को और वह किसी तरह विनोद को आफिस जाने के बजाए घर ले जाने में सपकल हो गई । खोटा से विनोद के टकराव ने उसे आतंकित कर दिया था ।
उसे विश्वास था कि खोटा इस अपमान का बदल जरूर लेगा और किस तरह लेगा इस कल्‍पना से ही वह कांप जाती थी ।
वह विनोद को बहलती रही ।
‘‘खोटा को तुमने ऐसा सबक सिखाया है कि आज के बाद तो ना वह तुमसे उलझेगा ना मेरी ओर आंख उठाने का साहस करेगा । तुमने जो कदम उफ़्या वह बहुत सही था ।’’
यू वह विनोद को बहल रही थी परंतु भीतर ही भीतर कांप रही थी कि खोटा जरूर इसका बदल लेगा ।
आगर उसने विनोद को कुछ किया तो ?
नहीं नहीं ! विनोद को कुछ नहीं होना चाहिए ! विनोद मेरा जीवन है। यदि उसके शरीर पर एक खराश भी आई तो मैं जिंदा नहीं रहूंगी ।
उसे ऐसा अनुभव हो रहा था उसके कारण यह युद्ध छिडा है । इस युद्ध का आंत दोनो पक्षों का आंत है इसके सिवा कोई पारिणाम निकल भी नहीं सकता।
भालई इसी में है कि दोनो पक्षों के बीच संधी करा दी जाए, ताकि युद्ध कि स्थिति ही पैदा ना हो ।
परंतु यह संधी किस प्रकार संभाव थी । खोटा बदले की आग में झुलस रहा होगा और जब तक बदले की यह आग नहीं बुझेगी उसे चैन नहीं आएगा ।
उसे खोटा एक आजगर अनुभव हो रहा था । जो उसके सामने खडा उसे निगलने के लिए अपनी जीप बार बार लपलपाता और पुंकपककारता । उस आजगर से उसे अपनी रश करनी थी ।
दूसरे दिन वह आफिस जाने लगी तो पान पर खोटा का सामना हो गया वह क्रोधभारी द़ष्टि से उसे घूर रहा था । उसने मुस्काकर देखा और आगे बढ गई ।
उसे मुस्काता देखकर खोटा आश्चर्य से उसे आंखें फाड फाडकर देखता रहा ।
एक दिन फिर वह आफिस जाने लगी तो मुस्काता हुआ खोटा उसका रास्ता रोककर खडा हो गया ।
उसकी आखों में एक चमक थी ।
‘‘मेरा रास्ता छोड दो’’ वह क्रोधभारी द़ष्टिसे खोटा को घूरती बोली ।
‘‘जानम ! अब तो हमरे तुम्‍हारे रास्ते एक ही है’’ कहते हुए खोटा ने उसका हाथ पकड लिया ।
उसने एक झटके से अपना हाथ छुडा लिया और समीप खडे नारियल पानी बेचने वाले की गाडी से नारियल छीलने की तेज दरांती उफ़्कर खोटा की ओर शेरनी की तरह लपकी.....
खोटा के चेहरे पर हवाईयां उडने लगीं आचानक वह सिर पर पैर रखकर भागा । वह उसके पीछे दरांती लिए दौड रही थी । फूलती हुई सांसो के साथ खोटा अपनी गाति बढाता जा रहा था ।
जब खोटा उसकी पहुंच से बहुत दूर चल गया तो वह खडी होकर अपनी फूली हुई सांसो पर नियंत्रण पाने का प्रयत्न करने लगी और फिर दरांती को एक ओर पेंकककर आफिस चल दी .....। द द
अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल 09322338918

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