Wednesday, October 19, 2011

Hindi Short Story Sherni By M.Mubin


कहानी     शेरनी   लेखक  एम मुबीन   


ख वह घर से निकली तो नौ बज रहे थे. तेज लोकल ट्रेन तो मिलने से रही, धीमी लोकल से ही जाना पड़ेगा. वह भी समय पर मिल गई तो ठीक. वरना यह तय है कि आज फिर वह देरी से ऑफिस पहुँचेगी. और लेट कार्यालय आने का मतलब? इस विचार से ही उसके माथे पर बल पड गए और भवें तन गईं. आँखों के सामने बॉस का चेहरा घूम गया. और कानों में उसकी गरजदार आवाज सुनाई दी.
"श्रीमती महातरे! आप आज फिर लेट आई हैं. मेरे बार बार ताकीद करने पर भी रोजाना लेट आती हैं. आपकी इस डुट्टाई पर मुझे गुस्सा आता है. आपको शर्म आनी चाहिए. बार बार ताकीद करने पर भी आप वही हरकत करती हैं . आज के बाद मैं आफ साथ कोई रियायत नहीं करूंगा.
कोई उससे तेजी से टकराया और उसके विचारों का क्रम टूट गया था. वह सड़क पर थी. भीड़ और यातायात भरी सडक उसे पार करनी थी. इसलिए होश में रहना बहुत जरूरी था. गायब मस्तिष्‍क रहते हुए सड़क पार करने की कोशिश में कोई भी हादसा हो सकता था. जो उससे टकराया वह तो कहीं दूर चला गया था परंतु इसके टकराने से उस पर गुस्सा नहीं आया था.
अच्छा हुआ वह उससे टकरा गई. उसके विचारों का सिलसिला तो टूट गया और वह होश की दुनिया में वापस आ गई. वरना तनाव में अपने इन्हीं विचारों में खोई रहती और बेख़याली में सड़क पार करने की कोशिश में किसी दुर्घटना का शिकार हो जाती. उसने चारों ओर चौकन्ना होकर देखा. सड़क के दोनों ओर गाडयाँ इतनी दूर थी कि वह आसानी से सडक पार कर सकती थी.
सिग्नल तक रुकने का अर्थ था स्वयं को दो चार मिनट लेट करना. विचार आते ही उसने सडक पार करने का फैसला कर लिया और दौडती हुई सडक की दूसरी ओर पहुँच गई. दोनों तरफ से आने वाली गाडयाँ उसके काफी समीप हो गई थीं. ज़रा सी देरी या सस्ती किसी दुर्घटना का कारण बन सकती थी. परंतु उसने अपने आप को पूरी तरह इसके लिए तैयार कर लिया था. कोई दुर्घटना हो इस बात का पूरा ध्यान रखा था. सड़क पार कर वह तंग सी गली में प्रवेश किया. जिसको पार करने के बाद रेलवे स्टेशन की सीमा आरम्भ होती थी. गली में कदम रखते ही उसके हृदय की धडकनें तेज हो गईं. साँसें फूलने लगीं और माथे पर पसीने की बूँदें उभर आईं. उसने हाथ में पकड़े रूमाल से माथे पर आई पसीने की बूँदें साफ कीं और फूली हुई साँसों पर नियंत्रण पाने की कोशिश करने लगी. परन्तु उसे पता था न फूली हुई साँसों पर नियन्त्रण पा सकेगी ना दिल की धड़कने की गति सामान्य कर सकेगी.
मस्तिष्क में खोटा का विचार जो आ गया था. उसे पूरा विश्वास था. गली के बीच उस पान की दुकान के पास वह कुर्सी लगाकर बैठा होगा. उसे आता देख भद्दे अंदाज में वाक्य मुस्कुराए है और उस पर कोई गंदा वाक्यांश किसे है. खोटा की यह दिनचर्या थी. सुबह शाम वह उसी जगह उसकी राह देखता था. उसे पता था सवेरे वह कब ऑफिस  जाती है और शाम को ऑफिस  से घर लौटती है. उसके आने जाने का रास्ता वही है. रेलवे स्टेशन जाने और रेलवे स्टेशन से घर जाने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है. एक है भी तो वह इतना लम्बा रास्ता है कि उस रास्ते से जाने की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है. इसलिए खोटा उसी रास्ते पर बैठा उसकी राह देखता रहता है और उसे देखते ही कोई भद्दा सा वाक्य हवा में उछाला था.
"हाय डारलनग! बहुत अच्छी लग रही हो. यह कार्यालय, नौकरी वोकरी छोड़ो. मुझे खुश कर दिया करो. हर महीने इतने पैसे दिया करूँगा जो नौकरी से चार महिनों में भी नहीं मिलते होंगे. आओ आज किसी होटल में चलते हैं. चलती आज शेरेटन होटल में पहले ही से अपना एक कमरा बुक है. नौकरी करते हुए जन्दगी भर शेरेटन होटल का दरवाजा भी नहीं देख पाओगी. आज हमारे साथ उसमें दिन गुजार कर देख लो. "
खोटा के हर वाक्य के साथ उसे अनुभव होता एक भाला आकर उसके मन में चुभ गया है. हृदय की धडकनें तेज हो जाती थीं और आँखों के सामने अंधेरा छाने लगता था. तेज चलने की कोशिश में कदम लड़खड़ाने लगते थे.परंतु वह जान तोड़ कोशिश कर के तेज क़दमों से खोटा की नज़रों से दूर हो जाने की कोशिश करती थी.
खोटा उस क्षेत्र का माना हुआ गुण्डा था. उससे क्षेत्र का बच्चा बच्चा उससे परिचित था. शराब, जुए, वेश्याओं के अड्डे चलाना, सप्ताह वसूली, सुपारी वसूली, अपहरण, हत्या और मारपीट आदि. लिए कि ऐसा कोई काम नहीं था जो वह नहीं करता था या इस तरह के मामलों में शामिल नहीं था. वह जो चाहता था कर जाता था कभी पुलिस की पकड़ में नहीं आता था. अगर किसी मामले में फँस भी गया तो उसके प्रभाव के कारण पुलिस को उसे दोदिनों में ही छोडना पडता था.
उस खोटा का दिल उस पर आ गया था. उसे माया महातरे पर एक छोटे से निजी कार्यालय में काम करने वाली एक बच्चे की माँ पर पहले तो खोटा उसे सिर्फ घूरा करता था. फिर जब उसके आने जाने का समय और रास्ता मालूम हो गया तो वह प्रतिदिन उसे उस रास्ते पर मिलने लगा.
रोज उसे देखकर मुस्कराता और उस पर गंदे वाक्यांश की बारिश करने लगता. खोटा की हरकतों से वह आतंकित सी हो गई थी. उसे यह अनुमान तो हो गया था खोटा के मन में क्या है. और उसे पूरा विश्वास था कि उसके मन में है खोटा उसे एक दिन पूरा करके ही रहेगा. इस कल्पना से ही वह काँप उठती थी. यदि खोटा ने अपने मन की मुराद पूरी कर डाली, या पूरी करने की कोशिश की तो? इस कल्पना से ही उसकी जान निकल जाती थी.
"नहीं! नहीं! ऐसा नहीं हो सकता. यदि खोटा ने मेरे साथ ऐसा कुछ किया तो मैं किसी को मुँह दिखाने के योग्य नहीं रहूँगी. में जीवित नहीं रह पैर है." उसे यह पता था कि वह इतनी सुन्दर है कि खोटा जैसे लोग उसे देखकर बहक सकते हैं. दूसरे हजार लोग उसे देखकर ऐसा कोई विचार अपने मन में लाते तो उसे कोई परवाह नहीं थी क्योंकि उसे विश्वास था कि वह कभी इस विचार को पूरा करने का साहस नहीं कर पाएंगे.
परन्तु खोटा? हे भगवान! जो सोच ले दुनिया की कोई भी शक्ति उसे अपने सोचे हुए काम को रोकने की कोशिश नहीं कर सकती थी. वह आते जाते खोटा की कल्पना से आतंकित रहती थी. और उस दिन तो खोटा ने सीमा कर दी. ना केवल उसका रास्ता रोक कर खड़ा हो गया था बल्कि उसकी कलाई भी पकड ली.
"बहुत ाकड़ती हो. अपने आप को क्या समझती हो. तुम्हें पता नहीं तुम्हारा पाला खोटा से पड़ा है. ऐसी अकड निकालूँगा कि जन्दगी भर याद रखो है. सारी अकड़ निकल जाएगी."
"छोड़ दो मुझे." उसकी आँखों में भय से आँसू आ गए. और वह खोटा के हाथों से अपनी कलाई छुडाने का प्रयत्न करने लगी. परन्तु वह किसी शेर के चंगुल में फँसी हिरनी सी स्वयं को अनुभव कर रही थी. खोटा भयानकअंदाज में हँस रहा था और वह उसके हाथों से अपनी कलाई छुडाने का प्रयत्न करती रही. इस दृश्य को देखकर एक दो रास्ता चलने वाले रुक गए. परन्तु खोटा पर नजर पडते ही वे तेजी से आगे बढ़ गए. दानवी हँसी हँसता हुआखोटा, उसकी विवशता से आनन्दित हो रहा था. फिर हँसते हुए उसने धीरे से उसका हाथ छोड़ दिया. वह रोती हुई आगे बढ गई. खोटा का दानवी अट्टाहास उसका पीछा करता रहा. वह रोती हुई स्टेशन आई और लोकल ट्रेन में बैठ सिसकती रही. उसे रोता देखकर आसपास के यात्री उसे आश्चर्य से देख रहे थे.
ऑफिस पहुँचने तक रो रोकर उसकी आँखें सूज गई थीं. उसमें आया परिवर्तन ऑफिस वालों से छिप ना सका. उसे ऑफिस की सहेलियों ने घेर लिया.
"क्या बात है माया, यह तुम्हारा चेहरा क्यों सूजा हुआ है आँखें क्यों लाल हैं?" उसने कोई उत्‍तर  नहीं दिया और उनसे लिपटकर दहाडे मार मार कर रोने लगी. वह सब भी घबरा गई और उसे सांत्वना देते हुए चुप कराने की कोशिश करने लगीं. बड़ी मुश्किल से उसके आँसू रुके और उसने पूरी कहानी उन्हें सुना दी. इससे पहले भी वह कई बार उन्हें खोटा की हरकतों के बारे में बता चुकी थी परंतु उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया था.
"नौकरी करने वाली स्त्रियों के साथ तो यह सब होता ही रहता है. मेरा स्वयं का एक प्रेमी है जो अंधेरी से चर्नी रोड तक मेरा पीछा करता है."
"मेरे भी एक आशिक साहब हैं. सवेरे शाम मेरे मोहल्ले के नुक्कड पर मेरा इंतजार करते रहते हैं."
"और मेरे आशिक साहब तो ऑफिस के गिर्द मंडराते रहते हैं. आओ बताती हूँ सडक पर खडे कार्यालय की ओर टकटकी लगाए देख रहे होंगे."
"अगर खोटा तुम पर आशिक हो गया है तो यह कोई चिन्ता की बात नहीं है. तुम कुछ ही ऐसी हो कि तुम्हारे तो सौ दो सौ प्रेमी हो सकते हैं." उनकी बातें सुनकर वह झुंझला जाती.
"तुम लोगों को मजाक सूझा है और मेरी जान पर बनी है. खोटा एक गुण्डा है, बदमाश है. वह ऐसा सब कुछ कर सकता है जिसकी कल्पना भी तुम्हारे प्रेमी लोग नहीं कर सकते. परन्तु उस दिन की खोटा की यह हरकत सुनकर सब सन्नाटे में आ गई थीं.
"क्या तुमने इस बारे में अपने पति को बताया?"
"नहीं आज तक कुछ नहीं बताया. सोचती थी कोई हंगामा ना खडा हो जाए."
"तो अब पहली फुरसत में उसे सब कुछ बता दो.."
उस शाम वह सामान्य रास्ते से नहीं लंबे रास्ते से घर गई. और विनोद को सब कुछ बता दिया कि खोटा इतने दिनों से उसके साथ क्या कर रहा था और आज उसने क्या हरकत की. उसकी बातें सुनकर विनोद का चेहरा तनगया.
"ठीक है! फिलहाल तो तुम एक दो दिन ऑफिस  मत जाओ. उसके बाद सोचेंगे क्या करना है. उसके बाद वह तीन दिन ऑफिस  नहीं गई. एक दिन वह बालकनी में खडी थी. अचानक उसकी नजर नीचे गई और उसका दिल धक से रह गया. खोटा नीचे खडा उसकी बालकनी को घूर रहा था. उससे नजर मिलते ही वह दानवी अंदाज में मुस्कराने लगा. वह तेजी से भीतर आ गई.
रात विनोद घर आया तो उसने आज की घटना बताई. इस घटना को सुन कर उसने अपने हूंठ भींच लिए. दूसरे दिन ऑफिस  जाना बहुत जरूरी था. इतने दिनों तक वह सूचना दिए बिना ऑफिस से गायब नहीं रह सकती थी.
"आज मैं तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने आऊँगा." विनोद ने कहा तो उसकी हिम्मत बँधी. विनोद उसे स्टेशन तक छोड़ने आया. जब वह गली से गुजरे तो पान स्टाल के पास खोटा मौजूद था.
"क्यों जानेमन! आज बॉडीगार्ड साथ लाई हो. तुम्हें अच्छी तरह मालूम है कि इस तरह के सौ बॉडीगार्ड मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते." पीछे से आवाज आई तो उस आवाज को सुनकर जोश में विनोद मड़ा परंतु उसने उसे थामलिया.
"नहीं विनोद, यह गुण्डों से उलझने का समय नहीं है." और वह विनोद को लगभग खींचती स्टेशन की ओर बढ गई. फिर शाम वापसी के लिए उसने लम्बा रास्ता अपनाया. परन्तु उसकी कॉलोनी के गेट के पास पहुँचते ही उसका मन धक से रह गया.
खोटा गेट पर उसकी राह था.
"मुझे अनुमान था कि तुम वापस उस रास्ते से नहीं आओ है. इसलिए तुम्हारी कॉलोनी के गेट पर तुम्हें सलाम करने आया हूं. काश तुम मुझसे फरार हासिल कर सको." यह कहते हुए खोटा उसे सलाम करता आगे बढ गया. रात विनोद को उसने सारी कहानी सुनाई, तो विनोद बोला. "कल यदि खोटा ने तुम्हें छेडा तो हम उसके विरुद्ध पुलिस में शिकायत करेंगे."
दूसरे दिन विनोद उसे छोडने के लिए आया तो खोटा से फिर आमना सामना हो गया. खोटी की गंदी बातें विनोद सहन नहीं कर सका और उससे उलझ गया. विनोद ने एक मुक्का खोटा को मारा. उत्तर में खोटा ने विनोद के मुँह पर ऐसा वार कि उसके मुंह से खून बहने लगा.
"बाबू! खोटा से अच्छे अच्छे तीसमारखाँ नहीं जीत सके तो तुम्हारी हैसियत ही क्या है?" घायल विनोद ने ऑफिस  जाने के बजाय पुलिस स्टेशन जाकर खोटा के विरुद्ध शिकायत करना जरूरी समझा. थाना प्रमुख ने सारी बातें सुनकर कहा. " ठीक है हम आपकी शिकायत लिख लेते हैं. परन्तु हम खोटा के विरुद्ध ना तो कोई सख्त कार्यवाही कर पाएँगे और ना कोई मजबूत केस बना पाएँगे. क्योंकि कुछ घंटों में खोटा छूट जाएगा और सम्भव है छूटने के बाद खोटा तुम से इस बात का बदला भी ले. वैसे आप डरेये नहीं हम खोटा को उसके किए की सजा जरूर देंगे. "
पुलिस स्टेशन से भी उन्हें निराशा ही मिली. उस दिन दोनों ऑफिस  नहीं गए. तनाव में बिना एक दूसरे से बात किए घर में ही टहलते रहे. शाम को उसने पुलिस स्टेशन फोन लगाकर अपनी शिकायत पर की जाने वाली कार्यवाही के बारे में पूछा .
"श्री विनोद!" थाना प्रभारी ने कहा. आपकी शिकायत पर हमने खोटा को स्टेशन बुलाकर ताकीद की है. यदि उसने दोबारा आपकी पत्नी को छेडा, आपसे उलझने की कोशिश की तो उसे अन्दर डाल देंगे. अन्य दिन दोनों साथ ऑफिस जाने के लिए रवाना हुए. निर्धारित स्थान पर फिर खोटा से सामना हो गया.
"वाह बाबू वाह! तेरी तो बहुत पहुँच है. खोटा से भी ज्यादा तेरी एक शिकायत पर पुलिस ने खोटा को बुलाकर ताकीद की और सिर्फ ताकीद की है ना? अब की बात खोटा ऐसा कुछ करेगा कि पुलिस को तुम्हारी शिकायत पर खोटा के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी ही पड़ेगी. "
"खोटा! हम शरीफ लोग हैं हमारी इज्जत हमें अपनी जान से ज्यादा प्यारी है और उस इज्जत की रक्षा के लिए हम अपनी जान भी दे सकते हैं और किसी की जान ले भी सकते हैं. इसीलिए भलाई इसी में है कि हम शरीफ लोगों को परेशान मत करो. तुम्हारे लिए और भी हजारों औरतें दुनिया में हैं. तुम कीमत अदा करके मन चाही औरत को प्राप्त कर सकते हो. फिर क्यों मेरी पत्नी के पीछे पडे हो? "
"मुश्किल यही है बाबू! खोटा का दिल जिस पर आया है वह उसे पैसों के बल पर नहीं मिल सकती. उसकी शक्ति के बल पर ही मिल सकती है."
"कमीने! मेरी पत्नी की ओर आँख भी उठाई तो मैं तेरी जान ले लूँगा." यह कहते हुए विनोद खोटा पर झपटा और उस पर बेतहाशा घूँसे बरसाने लगा. हक्का बक्का खोटा विनोद के वार से स्वयं को बचाने की कोशिश करने लगा . अचानक रास्ता चलते कुछ लोगों ने विनोद को पकड़ लिया, कुछ ने खोटा को. और वह किसी तरह विनोद को ऑफिस  जाने के बजाए घर ले जाने में सफल हो गई. खोटा से विनोद के टकराव ने उसे आतंकित कर दिया था. उसे विश्वास था कि खोटा इस अपमान का बदला जरूर लेगा. और किस तरह लेगा इस कल्पना से ही वह काँप जाती थी. वह विनोद को बहलाती रही.
"खोटा को तुमने ऐसा सबक सिखाया है कि आज के बाद तो ना वह तुमसे उलझेगा ना मेरी ओर आँख उठाने का साहस करेगा. तुमने जो कदम उठाया वह बहुत सही था." यूँ वह विनोद को बहला रही थी परन्तु भीतर ही भीतर काँप रही थी कि खोटा जरूर इसका बदला लेगा. अगर उसने विनोद को कुछ किया तो?
नहीं! नहीं! विनोद को कुछ नहीं होना चाहिए विनोद मेरा जीवन है. यदि उसके शरीर पर एक खराश भी आई तो मैं जन्दा नहीं रहूँगी. उसे ऐसा महसूस हो रहा था उसके कारण यह युद्ध छिडा है. इस युद्ध का अंत दोनों पक्षों का अंत है. इसके अलावा कुछ और निकल भी नहीं सकता. भलाई इसी में है कि दोनों पक्षों के बीच संधि करा दी जाए. ताकि युद्ध की नौबत ही न आए. परन्तु वह संधि किस प्रकार सम्भव थी. खोटा बदले की आग में झुलस रहा होगा और जब तक बदले की यह आग नहीं बुझेगी उसे चैन नहीं आएगा. उसे खोटा एक अजगर अनुभव हो रहा था. जो उसके सामने खडा उसे निगलने के लिए अपनी जीभ बार बार लपलपाता और फनकार रहा था. उस अजगर से उसे अपनी रक्षा करनी थी. दूसरे दिन वह ऑफिस  जाने लगी तो पान पर खोटा का सामना हो गया. वह क्रोध भरी दृष्टि से उसे घूर रहा था. उसने मुस्कराकर देखा और आगे बढ़ गई. उसे मुस्कराता देखकर खोटा आश्चर्य से उसे आँखें फाड़ फाड़ कर देखता रह गया.
एक दिन फिर वह ऑफिस  जाने लगी तो मुस्कराता हुआ खोटा उसका रास्ता रोककर खड़ा हो गया. उसकी आंखों में एक चमक थी.
"मेरा रास्ता छोड़ दो." वह क्रोध भरी दृष्टि से उसे घूर हुई क्रोध से बोली.
"जानम अब तो हमारे तुम्हारे रास्ते एक ही हैं." कहते हुए खोटा ने उसका हाथ पकड़ लिया. उसने एक झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया और समीप खडे नारियल पानी बेचने वाले की गाडी से नारियल छिलने की तेज दरांती उठाकर खोटा की ओर खेरनी की तरह लपकी. खोटा के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. अचानक वह सिर पर पैर रखकर भागा. वह उसके पीछे दरांती लिए दौड रही थी.
फूलती हुई साँसों के साथ खोटा अपनी गति बढाता जा रहा था. जब खोटा उसकी पहुँच से बहुत दूर चला गया तो वह खडी होकर अपनी फूली हुई साँसों पर नियंत्रण पाने की कोशिश करने लगी. और फिर दरांती को एक ओर फेंककर ऑफिस  चल दी.
 
...
अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल  09322338918

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