Wednesday, October 19, 2011

Hindi Short Story Parikarma By M.Mubin


कहानी    परिक्रमा    लेखक  एम मुबीन   
बेल बजाने पर नियम अनुसासर  पत्नी ने ही  दरवाजा खोला. उसने अपनी तेज नज़रें पत्नी के चेहरे पर केंद्रित कर दीं जैसे वह पत्नी के चेहरे से आज पेश आने वाली किसी असामान्य घटना को पढ़ने की कोशिश कर रहा हो.
पत्नी का चेहरा सपाट था. उसने एक गहरी सांस ली उसे लगा कि जैसे उसके दिल का एक बहुत बड़ा बोझ हल्का हो गया है.
पत्नी के चेहरे का मौन  इस बात की गवाही दे रहा था कि आज ऐसा कोई घटना पेश नहीं आई  जो चिंताजनक हो या उसके मन की उन आशंकाओं को सही साबित कर दे जिनके बारे में वह  रास्ते भर सोचता आया था. इतने दिनों में वह पत्नी के चेहरे की किताब पढ़ना अच्छी तरह सीख गया था, पत्नी के चेहरे के भावों  से अनुमान लगा लेता था कि आज किस तरह की घटना घटी होगी इससे पहले कि पत्नी उस घटना के बारे में उसे बताए वह स्‍वंय  को मनोवैज्ञानिक रूप से नुरी तरह उस घटना को जानने के बाद स्‍वंय  पर होने वाली प्रतिक्रिया के लिए तैयार कर लेता था.
अपना सिर झटककर उसके ने अपनी कमीज उतार कर पत्नी की ओर बढ़ा दी और पत्नी के हाथ से लुंगी लेकर उसे कमर के गिर्द  लपेट कर अपनी पैंट उतारने लगा. फिर वाश बेसिन के पास जाकर उसने ठंडे ठंडे पानी के छीन्‍टे अपने चेहरे पर मारे उन छीटों  के चेहरे से टकराते ही उसके सारे शरीर में ताज़ग़ी  का एक झोंक सा संचार   कर गया. फिर वह धीरे धीरे मुँह हाथ धोने लगा.
तौलिया से मुंह हाथ पोंछ कर  वह अपनी कुर्सी पर आ बैठा और पत्नी से पूछने लगा.
"गुड्डू कहां है?"
"शायद ट्यूशन के लिए गया है." पत्नी ने उत्‍तर  दिया.
"झूठ बोलता है वह" पत्नी की बात सुनते ही वह फट पड़ा. "वह ट्यूशन का बहाना करके इधर उधर आवारागर्दी करता फिरता है, अभी रास्ते में मैं उसे कैप्‍टोल   के पास चार आवारा दोस्तों के साथ देख चुका हूँ, उसकी ट्यूशन क्लास नाज़ के पास है, वह कैप्‍टोल   के पास कैसे पहुंच गया? "
"हो सकता है ट्यूशन जल्दी छूट गई हो और वह दोस्तों के साथ घूमने निकल गया हो." पत्नी ने बेटे का पक्ष लिया .
"यदि ट्यूशन क्लास से जल्दी छुट्टी हो गई तो उसे घर आना चाहिए था, दोस्तों के साथ आवारागर्दी के लिए जाना नहीं चाहिए था, मैं तो कहता हूं कि उसकी ट्यूशन सरासर धोखाधड़ी है, ट्यूशन के बहाने वह आवारागर्दी करता है और ट्यूशन शुल्क दोस्तों के साथ उड़ा देता है. "
"अगर बेटे पर भरोसा नहीं है तो स्‍वंय  किसी दिन ट्यूशन क्लास में जाकर पता क्यों नहीं लगा लेते?" पत्नी ने तेज स्वर में कहा तो उसने विषय बदला.
"मुन्‍नी   कहां है.?"
"अपनी एक सहेली के साथ शॉपिंग के लिए गई है."
"इस लड़की का बाहर निकलना अब कम कर दो. अब वह छोटी बच्ची नहीं रही, बड़ी हो गई है. सवेरे जब मैं ड्यूटी पर जा रहा था तो वह खिड़की में खड़ी ब्रश कर रही थी और नीचे दो तीन लड़के उसे देख कर मुस्कुरा रहे थे , भदे टिप्पणी पास कर रहे थे. यह मुहल्ला शरीफों के रहने के योग्य ही नहीं...... "वह बड़बड़ाने लगा.
"चलो खाना खा लो." पत्नी ने उसका मूड बदलने के लिए विषय बदलने की कोशिश की.
"अरे हां छोटा कहां है दिखाई नहीं दे रहा है."
"अपने दोस्तों के साथ खेलने गया है."
"कहाँ खेलने गया होगा?" वह झुंझला कर बोला. "बच्चों के खेलने के लायक कोई जगह भी तो नहीं बची है, चारों ओर कांक्रेट  का जंगल आबाद हो गया है. तुम्हें पता है कि वह अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने आजाद मैदान जाता है.? "
"रात के आठ बज रहे हैं, आजाद मैदान में सात बजे अंधेरा हो जाता है क्या वह अब तक फल्ड लाइट में क्रिकेट खेल रहा होगा.?"
"देखो तुम बच्चों को आने जाने के लिए बस या टैक्सी का किराया नहीं देते हो तो ज़ाहिर सी बात है कि आजाद मैदान से पैदल ही आ रहा होगा और आजाद मैदान कोई इतने पास नहीं है कि पांच दस मिनट में कोई घर आजाए. "
"सुलताना  मैं तुम से बार बार कहता हूँ कि मैं जब घर आउं तो मुझे बच्चे घर में दिखाई देने चाहिए परंतु तुम मेरी इस बात को गंभीरता से लेती ही नहीं, अंत तुम्हारे मन में क्या है, तुम क्या चाहती हो?"
"देखो! तुम अगर बच्चों के बाप हो तो मैं भी बच्चों की माँ हूँ, तुम से अधिक मुझे बच्चों की चिंता रहती है मुझे पता है इस शहर और हमारे आसपास का वातावरण इस योग्य नहीं है कि बच्चे ज़्यादा देर घर से बाहर रहने पर भी सुरक्षित रहें परंतु क्या करूँ बच्चे कोई न कोई ऐसा काम बता देते हैं कि विवश मुझे उन्हें बाहर जाने की अनुमति देनी ही पड़ती है. "पत्नी ने उत्‍तर  दिया." अब यह बेकार की बातें छोड़ो और खाना खालो , पता नहीं दोपहर में कब खाना खाया है? "
"ठीक है निकालो." उसने भी हथियार डाल दिए.
वह यूं तो   इत्मीनान से खाना खा रहा था परंतु उसका सारा ध्यान बच्चों में लगा हुआ था. यह गुड्डू अपने दोस्तों के साथ इतनी देर तक पता नहीं क्या क्या करता फिरता है मुन्‍नी   अपनी सहेली के साथ शॉपिंग करने गई है अभी तक वापस क्यों नहीं आई ? उसे इतनी रात तक घर से बाहर नहीं रहना चाहिए और छोटे को क्रिकेट का जुनून सा है अब क्रिकेट खेलने के लिए दो तीन किलोमीटर दूर आजाद मैदान में और वह भी पैदल जाने में कोई तुक है?
जब वह घर से बाहर ड्यूटी पर होता था तो भी एक क्षण के लिए घर और बच्चों का ध्यान उसके मन से अलग नहीं हो पाता था. घर आने के बाद भी उसे इस यातना से मुक्ति नहीं मिल पाती थी. अगर बच्चे घर में उसकी  नज़रों के सामने भी होते तो वह उन्हीं के बारे में सोचा करता था.
गुड्डू पढ़ने लिखने में काफी अच्छा है, काफी बुद्धिमान है. बारहवीं पास कर ले तो कोई अच्छी लाइन में डाला जा सकता है, डॉक्टर बनाने की ताकत  तो नहीं है, हाँ किसी पोलीटेकनिक में भी प्रवेश मिल जाए तो उसे पढ़ा सकता है. मुन्‍नी   शिक्षा का सिलसिला समाप्‍त  कर देना उसकी ईच्‍छा के ख़िलाफ़ था परंतु इसके अलावा कोई रास्ता भी नहीं था, तीसरी बार मैट्रिक में फेल हुई थी पढ़ने लिखने में यूं ही है. हां सुंदरता में मां से बढ़कर है उसकी विवाह  की उम्र है, वह जल्द से जल्द उसका विवाह  कर के एक बड़े कर्तव्य से  निवृत्त होना चाहता है परंतु क्या करें मुन्‍नी   के लिए कोई अच्छा लड़का मिलता ही नहीं. एक दो रिश्ते आए भी परंतु न तो वह मुन्‍नी   की गुणवत्ता के थे न बराबरी के लिए उसने इन्‍कार कर दिया.
छोटा पढ़ने में तेज था परंतु क्रिकेट... उफ! यह क्रिकेट उसे बर्बाद करके रख देगा. जहां तक सुलताना का प्रशन   था दिन भर घर के काम स्‍वंय  अकेली करती थी. घर के सारे काम, बच्चों के काम के बाद एम्‍ब्रायडरी मशीन पर बैठ जाती थी तो कभी कभी रात के दो बज जाते थे.
वह उसे समझाता था. उसे दो बजे रात तक आंखें फोड की जरूरत नहीं है. वह इतना कमा लेता है कि उनका गुज़र हो जाए परंतु वह भड़क कर उत्‍तर  देती.
"तुम्हारी बुद्धि पर तो पर्दा पड़ा हुआ है. अगर मैं थोड़ी मेहनत कर दो पैसे कमा लेती हूँ तो इसमें बुराई क्या है? घर में जवान बेटी है, उसके लिए पैसे जमा कर रही हूँ. बेटी के विवाह  को मामूली काम मत समझो विवाह  तो एक ऐसा काज है जिसके लिए समुद्र के पानी जैसा सामान भी कम पड़े. "
ऑफिस में काम करते हुए वे सबसे अधिक सुलताना  के बारे में सोचता था. घर में अकेली होगी उसने दरवाजा तो बंद कर रखा है...... या फिर किसी अजनबी की दस्तक पर दरवाज़ा खोल कर संकट में फंस जाए है.
एक दिन पुलिस एक अपराधी का पीछा करती उनके मुहल्ले तक आ गई थी. दोषी शरण लेने के लिए उनकी बिल्डिंग में घुस गया. उसने उनके घर पर दस्तक दी और बेख़याली में सुलताना ने दरवाजा खोल दिया. उस अपराधी ने तुरंत चाकू निकाल कर उसके कंठ पर रख दिया और उसे धमकाते घर में घुस गया.
"खामोश! अगर मुंह से ज़रा  सी आवाज़ भी निकली तो गला कट जाएगा."
वह बहुत देर तक सुलताना  का मुंह दबाए उसके गले पर चाकू लगाए घर में छुपा रहा था. पुलिस सारी बिल्डिंग में उसे ढूंढ रही थी. सुलताना  एक दो बार मचली तो तेज चाकू उसके शरीर से लग गया और शरीर पर एक दो जगह घाव हो गए जिनमें से खून बहने लगा. बाद में जब उस बदमाश को लगा कि पुलिस जा  चुकी है तो वह सुलताना  को छोड़कर भागा. उसी समय सुलताना  ने चीखना शुरू कर दिया...... सुलताना  की चीखें सुनकर नीचे से गुजरते पुलिस वाले चौकन्ना हो गए और उन्होंने इस बदमाश को गोली का निशाना बना दिया.
बाद में पुलिस को पता चला कि बदमाश उनके घर में छुपा हुआ था तो उन्होंने पंचनामे  में सुलताना  का नाम भी दर्ज कर लिया सुलताना  के साथ इसे कई बार पुलिस स्टेशन के चक्कर काटने पड़े. पुलिस उल्टे सीधे प्रश्न करती.
"वह बदमाश घर में घुसा तो आप चीख़ी क्यों नहीं? वह बदमाश तुम्हारे ही घर में क्यों घुसा क्या तुम लोग पहले से जानते हो? उस बदमाश ने तुम्हारे साथ
क्‍या किया ? यह शरीर पर घाव कैसे आए तुमने प्रतिरोध क्यों नहीं किया? ‘’
तब से रोज़ाना  आशंका लगी रहती थी कि आज भी फिर उसी तरह की कोई वारदात न हो जाए.
एक बार मुहल्ले में पुलिस का दिन दहाड़े किसी गिरोह से एनकाउंटर हो गया. दोनों तरफ से गोलियां चल रही थीं. लोग भयभीत होकर इधर उधर भाग रहे थे. उस समय छोटा स्कूल से आया बेख़याली में वह उस क्षेत्र में प्रवेश कर गया जहां मुठभेड़ चल रही थी इससे पहले कि स्थिति का उसे ज्ञान होता और वह वहां से किसी सुरक्षित स्थान की ओर भागता एक गोली उसके बाजू को चीरती हुई गुजर गई.
रक्त लहू लुहाण हो वह बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़ा. मुठभेड़ ख़त्म हुआ तो किसी की नज़र उस पर पड़ी और इसी ने उन्हें ख़बर की और उसे अस्पताल ले जाया गया.
गोली मांस को चीरती हुई लगी थी, शुक्र था हड्डियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था, फिर भी वह दस दिनों तक अस्पताल में रहा और बाजू में घाव भरने में पूरा एक महीना लग गया.
छोटा अच्छा हो गया था परंतु इतना कमज़ोर और पतला हो गया था कि पूरे एक साल तक उसकी पुराना स्वास्थ्य वापस न आ सका.
एक दिन तरकारियां खरीद कर वापस आती मुन्‍नी   को किसी गुंडे ने छेड़ दिया तब गुड्डू स्कूल से वापस आ रहा था, उससे सहन  नहीं हुआ और वह गुंडे से उलझ पड़ा.
गुड्डू भला उ स गुंडे का मुकाबला किया करता गुंडे ने उसे घायल कर दिया कुछ लोग उसकी मदद को बढ़े तो गुंडा भाग खड़ा हुआ परंतु गुड्डू घायल हो गया था.
इसके बाद पता नहीं क्या बात उसके मन में बैठ गई कि उसने मोहल्ले के आवारा बदमाश लड़कों से दोस्ती कर ली और स्कूल से आने के बाद वह अधिकांश उन्हीं के साथ रहने लगा. एक दो बार के समझाने पर वह उससे भी उलझ पड़ा.
"अब्बा! आज के ज़माने में अपनी और अपने परिवार की रक्षा के लिए ऐसे लोगों के साथ रहकर उनकी मदद लेना बहुत जरूरी है. सज्जनता, गुंडे और बदमाशों से हमारी रक्षा नहीं कर सकती."
पिछले कुछ सालों में कुछ ऐसी घटनाएं हुई थी कि वह एक तरह से टूट सा गया था. गुड्डू रात को देर से घर आता था. देर रात तक वह आवारा बदमाश किस्म के लड़कों के साथ रहता था. वह उसे रोकता तो वह उलझ पड़ता. ..... केवल संतोष की बात यह थी कि वह स्कूल नियमित रूप से जाता था और पढ़ाई में भी पहले की तरह रूचि लेता था.
मुन्‍नी   को आवारा बदमाश लड़के उसके सामने छेड़ने, वाक्य कसते थे. सुलताना  भी दबे शब्दों में कई बार इस बारे में उससे कह चुकी थी जब वह अपने पड़ोसियों से अपने घर का मुकाबला करता तो उसे कुछ महसूस होता था कि उसके बच्चे पड़ोसियों की तुलना कहीं ज्यादा सीधी राह पर हैं.
पड़ोसियों के बच्चों का बुरा हाल था. कई अच्छे लड़के शिक्षा छोड़कर बुरी संगत  में पड़ने के कारण ग़लत रास्‍तों  पर चल निकले थे. गली में कहीं चोरी छिपे नशा  वर सामग्री बकती थीं कई बच्चे नशीली वस्तु के आदी बन चुके थे. कम उम्र में ही कुछ लड़के वेश्‍याओं के बंदी  बनकर जीवन और जवानियां बर्बाद कर रहे थे. गुंडागर्दी  के ग्लैमर ने कई लड़कों को फांस लिया था और वह नैतिकता के सारे शिक्षण भूलकर भैतिकवाद  का शिकार हो गए थे.
लड़कियों की एक अजीब ही दुनिया थी. ज़्यादातर लड़कियाँ ग्लैमर का शिकार थीं और ग्लैमर को प्राप्त करने के लिए भटक चुकी थीं भटकने में भी उन्हें कोई लज्जा नहीं महसूस होती थी. जैसे नैतिकता, मूल्यों एक कहानी पुरानी  हो.
जब वह अपने वातावरण पर नज़र डालता तो कभी कभी यह सोच कर कांप उठता था वह और उसके बच्चे भी उसी वातावरण में रह रहे हैं. उसके बच्चे भी कभी भी इस वातावरण के बंदी  बनकर इन बुराइयों का शिकार बन सकते हैं. जब कभी कल्पना में इस बारे में सोचता तो उसे अपने सारे सपने टूट कर बिखरते  महसूस होते थे. इस सिलसिले में सुलताना  भी उसकी तरह चिंतित थी और वह अक्सर उससे दबे शब्दों में कहा करती थी.
"सलीम ! भगवान का शुक्र है हमारे बच्चे आज तक इस गंदे वातावरण से बच्चे हुए हैं परंतु डरती हूं अगर इस वातावरण ने उन्हें भी अपनी चपेट में ले लिया तो? इसका क्या इलाज हो सकता है?"
"एक ही इलाज है, हम यह जगह छोड़ दें."
"कहाँ जाएंगे? हमें इस शहर में तो सर छिपाने के लिए कोई जगह मिलने से रही हमारे पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि हम कहीं दूर कोई जगह ले सकें."
"कहीं भी चलो. चाहे वह जगह जहां ऐसा वातावरण न हो शहर से पचास किलोमीटर दूर हो, मुझे कोई शिकायत नहीं होगी परंतु अपने बच्चों की भलाई के लिए अब यह प्रस्‍थान  जरूरी  हो गई है. समस्या तुम्हारी नौकरी का है तुम्हें आने जाने में थोड़ी तकलीफ़ तो होगी परंतु क्या अपने बच्चों की भलाई के लिए तुम इतनी तकलीफ़ नहीं उठा सकते? "
"मैं अपने बच्चों की भलाई के लिए हर कष्‍ट  उठा सकता हूँ."
"फिर कुछ सोचो, इस वातावरण से निकलने के लिए कोई कदम उठाव." पत्नी ने कहा.
"हाँ ज़रूर कोई कदम उठाना जरूरी  है." उसने उत्‍तर  में कहा और सोच में डूब गया.
एक दिन वह आया तो बहुत खुश था. आते ही सुलताना  से कहने लगा. "सुलताना ! अपने बच्चों की भलाई के लिए हमें जो क़दम उठाना चाहिए था इस राह में पहला कदम रख लिया है, मैंने एक जगह फ्लैट बुक किया है वह जगह यहाँ से पचास किलोमीटर दूर है परंतु वहां पर   यहां सी गंदगी नहीं होगी. "यह कहते हुए वह सुलताना  को सारी बात समझाने लगा.
बहुत बड़ी कालोनी बन रही है मामूली राशि पर वहां फ्लैट बुक हो गया है. पैसे किश्तों में अदा करने हैं अब पूरी कॉलोनी तैयार होने में दो साल लगेंगे. तब तक हम पैसे अदा कर देंगे या जो बाकी पैसे होंगे इस कमरे को बेच कर का अदा कर देंगे.
दोनों की आंखों के सामने एक सुंदर बस्‍ती  का सपना था. खूबसूरत इमारतें, चारों ओर फैली हरियाली, मस्जिद, मदरसा, बाग, स्कूल, विशाल साफ सड़कें और खुली खुली जलवायु जिनमें घुटन का नाम व निशान नहीं.
उन्होंने बच्चों को भी उस बस्ती के बारे में बताया था. बच्चों ने उनके इस सपने के बारे में अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं व्‍यक्‍त की  थी.
एक दो बार सुलताना  ने दबे शब्दों में कहा भी था.
"बच्चे यहां पैदा हुए पले  बढ़े हैं. उन्हें इस जगह से माहब्‍बत सी हो गई है संभव है वह यहां से जाने से इन्‍कार कर दें. आखिर उनके दोस्त मित्र  तो यहां रहते हैं."
"बच्चों को हर हाल में यहां से जाना होगा. आखिर यह सब हम अपनी खुशी के लिए नहीं उनकी भलाई के लिए कर रहे हैं."
उन दिनों वह जिस यातना का शिकार था. उसके ऑफिस में काम करने वाला अकबर भी दो साल पहले इसी यातना के दौर से गुज़र रहा था. अकबर का भी वही समस्या थी जो उसकी समस्या थी. अकबर ने भी वही हल और रास्ता निकाला था जो उसने निकाला था.
कुछ दिनों पहले वह भी शहर से दूर नई बसने वाली बस्ती में जा बसा था. जगह बसने के बाद वह बहुत खुश था.
"सलीम भाई सारी चिंताओं और आशंकाओं से मुक्ति मिल गई है. समझ लीजिए अब बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो गया है."
उसके मन में बार बार अकबर की वह बात गूंजती थी. जब भी वह अकबर की इस बात के बारे में सोचता था. यह सोच कर अपना दिल बहलाता था कि एक साल बाद तो उसे भी अकबर की तरह एक नई बसने वाली बस्ती में बसना है. एक साल बाद उसके होंठों पर भी वही शब्द होंगे. बस एक साल नरक में बिता कर स्‍वंय  को नरक से सुरक्षित रखना है.
दिन गुजर रहे थे. और अच्छे दिन समीप  आ रहे थे. उस स्थान से प्रवास के दिन जैसे समीप  आ रहे थे वैसे वैसे बच्चों, घर, पत्नी के बारे में उसकी चिन्‍ता  ज्यादा ही बढ़ती जा रही थीं वह उनके बारे में कुछ ज़्यादा ही सोचने लगा था.
उस दिन ऑफिस कैन्‍टिन  में अकबर के साथ लंच लेते हुए उसने अकबर को चिंतित पाया तो पूछ बैठा.
"क्या बात है अकबर बहुत परेशान लग रहे हो?"
"क्या बताऊँ सलीम भाई! सारी प्रयत्‍न  और योजना गलत साबित हो गए हैं."
"क्या बात है तुम्हें किस बात की चिंता है?"
"जिन बच्चों के भविष्य को बचाने के लिए नगर से दूर रहने का सोचा था  वहां जाने के बाद भी बच्चों का भविष्य सुरक्षित नहीं हो सका है. यहाँ के वातावरण से वे बच गए तो वहां पर एक नए और अजीब वातावरण में रम रहे हैं, ऊंचे सपना, ऊँची सोसायटी के आदतों व  , उसी सोसाइटी में ढलने  की कोशिश. बिना यह जाने कि हमारी उस सोसाइटी के तौर तरीक़ों में ढल कर रहने की हैसियत नहीं है. उपभोक्ता संस्कृति उन पर हावी हो रहा है, सैटेलाईट  संस्कृति और उसके द्वारा फैलने वाले विचारों के वे शिष्‍य  बन रहे हैं, मादक पदार्थ लेने की लत उनमें बढ़ती जारी है, मूल्यों का उनमें अभाव हो रहा है, पहले वे विचारों में ढलने  वाले थे वह विचारों मुझे पसंद नहीं थे, इसलिए उन्हें इस जगह से दूर ले गया परंतु वहां वे ऐसे विचारों में ढल रहे हैं जो मुझे भी पसंद नहीं है. "
वह अकबर की बात सुनकर सन्नाटे में आ गया.
एक साल बाद उसे भी तो वहां जाना है. अगर वहां उसके साथ भी ऐसा हुआ तो इस प्रस्‍थान  का क्या लाभ?
उसे लगा जैसे वह एक वर्तुल में  परिक्रमा  कर रहा है. किसी नापसंद स्थान से वह चाहे कितनी दूर भी जाना चाहे परंतु लौट कर उसी जगह आना है.
 
अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल  09322338918

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