Saturday, October 8, 2011

Hindi Short Story Rehai By M.Mubin

कहानी रिहाई लेखक एम मुबीन

दोनों चुपचाप पुलिस स्टेशन के कोने में रखी एक बँच पर बैठे साहब के आने की राह देख रहे थे -
उन्‍हे वहां उस स्थिति में बैठे साहब की प्रतीश करते तीन घंटे बीत गए थे । दोनों में इतना भी साहस नहीं था कि आपसमें ही बातें करके समय काटने का प्रयत्न करते ।
जब भी वे एक दूसरे को देखतें, दोनों की नजरें आपस में मिलतीं तो वे एक दूसरे को अपने आपराधी अनुभव करने लगते ।
दोनों में से दोष किसका था अभी तक वे दोनों स्वयं यह तय नहीं कर पाए थे । कभी उन्‍हे अनुभव होता जैसे वे सचमुच आपराधी है कभी अनुभव होता जैसे उन्‍हे एक ऐसे आपराध की सजा दी जा रही है जो उन्‍हों कभी नहीं किया है ।
समय बीताने के लिए वे भीतर चल रही गाति विधियों का निरशण करने लगे । उनके लिए वह स्थान बिलकुल आपारिचित सा था । उन्‍हे याद नहीं आ रहा था जीवन में कभी उन्‍हे किसी काम से भी उस, या उस जैसे किसी स्थान पर जाना पहा हो ।
या यदि उन्‍हे कभी उस प्रकार के किसी स्थान पर जाना पडा भी तो वह स्थान कम से कम इस स्थान के समन तो नहीं था ।
सामने लकआप था ।
पांच छ लोहे की सलखों वाले दरवाजे और उन दरवाजों के पीछे बने छोटे छोटे कमरे । हर कमरे में आठा दस व्‍यक्ति बंद थे । कोई सो रहा था, तो कोई उंघ रहा था, कोई आपस में बातें कर रहा था, तो कोई सलखों के पीछे से झांककर कभी उन्‍हे, तो कभी पुलिस स्टेशन में आने वाले सिपाहियों को देख कर व्यंग भारी आंदाज से मुस्का रहा था ।
उनमें से कुछ के चेहरे इतने भायानक और #ूकर थे कि उन्‍हे देखकर ही आनुमन हो जाता था उनका संबंध आपराधियों से है या वे स्वंय आपराधी है । परंतु कुछ चेहरे बिलकुल उनसे मिलते जुलते थे ।
आबोध, भाोले-भाले चेहरे, वे सलखों के पीछे से झांककर उन्‍हे बार बार देख रहे थे । जैसे उनके भीतर कुतुहल जागा हो ।
‘‘तुम लेग शायद हमरे भाई बंध हो? तुम लेग यहां कैसे आ फंसे?’’
वे जब उन चेहरों को देखते थे तो मन में एक ही विचार आता था कि चेहरे से तो ये भाोले-भाले, आबोध, सुशिक़ित लगते है ये कैसे इस नरक में आ फंसे ?
बाहर दरवाजे पर दो बंदूकधारी पहरा दे रहे थे । लकआप के पास भी दो सिपाही बंदूक लिए खडे थे ।
कोने वाली मेज पर एक वर्दीवाल निरंतर कुछ लिखे जा रहा था । कभी कोई सिपाही आकर उसके सामने वाले टेबल पर बैठा जाता तो वह अपना काम छोहकर उससे बातें करने लगता, फिर उस सिपाही के जाने के बाद अपने काम में व्यस्त हो जाता । उसके बाजू में एक खाली टेबल था उस खाली टेबल पर दोनों के ब्रिपककेस रखे हुए थे । उनके साथ और भी बहुत से लेग रेलवे स्टेशन से पकहकर लए गए थे उनका सामन भी उसी टेबल पर रखा हुआ था ।
वे लेग भी उनके साथ बैचं पर बैठे हुए थे । परंतु किसी में इतना साहस नहीं था कि एक दूसरे से बातें करें, यदि व आपसमें बाते करने का प्रयत्न करते तो समीप खडा सिपाही गरज उठता
‘‘ऐ ! चुपहो जाओ.... आवाज मत निकाले.... शोर किया तो सबको लकआप में डाल दूंगा ।’’
उसके बाद उन लेगों मे काना फूसी में भी एक दूसरे से बात करने का साहस नहीं किया था । वे सब एक दूसरे के लिए आपारिचित थे । संभाव है पारिचित भी ड़ोंगे जिस प्रकार वह और आशोक एक दूसरे के पारिचित थे । ना केवल पारिचित बालिक आच्छे दोस्त भी थे । एक ही आफिस में बरसों से वे एक साथ काम कर रह थे और एक साथ उस संकट में भी फंसे थे ।
आज जब वे आफिस से निकले तो दोनों ने सपने में भी नहीं सोचा था कि दोनों इस मुसीबत में फंस जाएंगे ।
आफिस से निकलते हुए आशोक ने कहा था -
‘‘मेरे साथ ज़रा मर्एोकट तक चलेगे ? एख छुरी का सेट खरीदना है, पत्‍नी कई दिनों से लने के लिए कह रही है परंतु आफिस के कामें के कारण मर्एोकट जाने का समय ही नहीं मिलता ।’’
‘‘चले’’ उसने घडी देखते हुए कहा । ‘‘मुझे सात बजे की तेज लेकल ट्रेन पकडनी है और अभी छ ही बजे है । इतनी देर में यह काम निपटाया जा सकता है ।’’
और वह आशोक के साथ मर्एोकट चल आया । एक दुकान से उन्‍हों छुरियों का सेट खरीदा । उस सेट में विफ्रिन्न आकार की आठा दस छुरियां थीं उनकी धार बडी तेज थी और दुकानदार का दावा था रोज उपयोग करने के बाद भी दो वर्षो तक धार कायम रहेगी क़्योंकि ये स्टेनलेस स्टाील की बनी है । कीमत भी वाजिब थी । कीमत आदा करके सेट आशोक ने अपनी आटेची में रखा और बातें करते हुए वे रेलवे स्टेशन की ओर चल दिए ।
स्टेशन पहुंचे तो सात बजने में बीस मिनट शेष थे । दोनों की इच्छित लेकल ट्रेन के आने में अभी बीस मिनट बाकी थे ।
फास्ट ट्रेन के प्लेट फार्म पर आधिक भीड नहीं थी । धीमी गाडियों वाले प्लेट फार्म पर ज्यादा भीड थी । लेग 20 मिनट तक किसी गाडी की राह देखने के बजाए धीमी गाडियों से जाना पसंद कर रहे थे ! आचानक वे चौंक पहे ।
प्लेट फार्म पर आचानक पुलिस की पूरी पकोर्स उमड पडी और उन्‍हों प्लेट फार्म पर मौजूद हर व्‍यक्ति को अपने स्थान पर जाम कर दिया । दो-दो तीन-तीन सिपाही आठा-आठा दस-दस लेगों को अपने घेरे में ले लेते और उनसे पूछताछ करके उनके सामन आटेचियों की तलशी लेने लगते कोई संशित या इच्छित वस्तु ना मिलने पर उन्‍हे जाने देते, या उन्‍हे कोई संशित या इच्छित वस्तु मिल जाती तो दो सिपाही उस व्‍यक्ति को जिसके पास से वह चीज मिली हो पकडकर प्लेट फार्म के बाहर खडी जीप में बिठा आते ।
उन्‍हे भी तीन सिपाहियों ने घेर लिया ।
‘‘क़्या बात है ? हवलदार साहब’’ उसने उससे पूछा ।
‘‘यह तलशियां किस लिए ली जा रही है ।’’
‘‘हमें पता चल है कि कुछ आतंकवादी इस समय इस प्लेट फार्म से हाथियार ले जा रहे है उन्‍हे गिरपक़्तार करने के लिए यह कार्यवाही चल रही है’’ एक सिपाही ने उत्तर दिया ।
वे कुल आठा दस लेग थे जिन्‍हे उन सिपाहियों ने घेर रखा था । उनमें से चार की तलशी हो चुकी थी उन्‍हे छोड दिया गया था ।
अब आशोक की बारी थी ।
शरीर की तलशी लेने के बाद आशोक की ब्राीपककेस खोलने का आदेश दिया गया ।
ब्राीपककेस खोलते ही एक दो चीजों को उलट पलट करने के बाद जैसे ही उनकी नजर छुरियों के सेट पर पडी वे उछल पडे ।
‘‘बाप रे इतनी सारी छुरियां साहब हाथियार मिले है ।’’
एक ने आवाज देकर थोडी दूर खडे इन्सपेक़्टर को बुलया ।
‘‘हवलदार साहब यह हाथियार नहीं सब्जाी तरकारी काटने वाली छुरियों का सेट है’’ आशोक ने घबराए स्वर में समझाने का प्रयत्न किया ।
‘‘हा हवलदार साहब यह घरेलू उपयोग की छुरियों का सेट है हमने इसे अभी बाजार से खरीदा है’’ उसने भी आशोक की स फाई पेश करने की कोशिश की ।
‘‘तो तू भी इसके साथ है’’ कहते तुरंत एक सिपाही ने उसे दबोच लिया दो सिपाही पहले ही आशोक को दबोच चुके थे ।
‘‘हम कहते है हवलदार साहब यह हाथियार नहीं घर मे काम
आने वाली छुरियों का सेट है’’ आशोक ने एक बार फिर उन्‍हे समझाने
की कोशिश की।
‘‘चुप बैठा’’ एक जोरदार डंडा उसके सिर पर पडा ।
‘‘हवलदार साहब आप मर क़्यों रहे है’’ आशोक ने विरोध किया ।
‘‘मरें नहीं तो क़्या तेरी पूजा करे हाथियार साथ लिए फिरता है दंगा पकसाद कराने का इरादा है क़्या? जरूर तेरा संबंध उन आतंकवादियों से है ।’’
एक सिपाही बोल और दो सिपाही आशोक पर डंडे बरसाने लगे ।
उसने आशोक को बचाने का प्रयत्न किया तो उसपर भी डंडे पडने लगे।
उसने इसी में भालई समझी कि वह चुप रहें
उस पर भी दो चार डंडे पडे फिर हाथ रोक दिया गया । परंतु आशोकका बुरा हाल था वह जैसे ही कुछ कहने के लिए मुंह खोलता था उस पर डंडे बरसने लगते थे विवश उसे चुप होना पडा ।
‘‘क़्या बात है !’’ इस बीच वह इन्सपेक़्टर वहां पहुंच गया जिसे उन्‍हों आवाज दी थी ।’’
‘‘साहब इसके पास से हाथियार मिले है’’
‘‘इसे तुरंत थाने ले जाओं !’’ इन्सपेक़्टर ने आदेश दिया और दूसरी और चल गया ।
चार सिपाहियों ने उन्‍हे पकडा और घसीटते हुए प्लेट फार्म के बाहर ले जाने लगे । बाहर एक पुलिस जीप खडी थी ।
उस जीप में पहले से ही दो चार आदमी बैठे थे । उन सबको चार सिपाहियों ने अपने सुरक्षा कवच में ले रखा था ।
‘‘आप लेगों को किस आरोप में गिरपक़्तार किया गया है’’ जैसे ही उन लेगों में से एक आदमी ने पूछने का प्रयत्न किया एक सिपाही का पकौलदी मुक़्का उसके मुंह पर पडा और मुंह से खून बहने लगा ।
‘‘चुपचाप बैठा रहे ! नहीं तो मुंह तोड दूंगा’’ सिपाही गुरार्या ।
वह आदमी अपना मुंह पकड के बैठा गया और जेब से रूमल निकालकर मुंह से बहते खून को सापक करने लगा ।
पुलिस स्टेशन लकर उन्‍हे उस बँच पर बिठा दिया गया और उनका सामन सामने वाले टेबल पर रख दिया गया, जो शायद इन्सपेक़्टर का था ।
वे जब पुलिस स्टेशन पहुंचे तो निरंतर लिखने वाले ने सिपाहियों से पूछा
‘‘ये कौन लेग है ? इन्‍हे कहा से ल रहे हो ? ’’
‘‘रेलवे स्टेशन पर छापे में पकडे गए है इनके पास से संशित चीजें मिली है यह हाथियार बरामद हुए है ’’
‘‘फिर इन्‍हे यहां क़्यों बिठा रहे हो ? लकआप में डाल दो ।’’
‘‘साहब ने कहा है उन्‍हे बाहर बिफ़्कर रखना वे आकर उनके बारे में निर्णय लोंगे’’
बँच पर बिफ़्ने से पूर्व उनकी अच्‍छी तरह से तलशी ली गई कोई संशित वस्तु नहीं मिली थी यही बहुत बडी बात थी ।
उनके पुलिस स्टेशन पहुंचने के थोडी देर बाद दूसरा जत्था पुलिस स्फ़् शन पहुंचा था । वे भी आठा दस लेग थे शायद उन्‍हे किसी दूसरे इन्सपेक़्टर ने पकडा था उन्‍हे दूसरे कमरे में बिफ़्या गया था ।
इस प्रकार वहां कितने लेग लए गए थे । आनुमन लगाना काफ़्नि था क़्योंकि वे उसी कमरे की गातिविधियां देख पा रहे थे जिस में वे कैद थे ।
नए सिपाही आते तो उन पर एक उंचटती द़ष्टि डालकर दूसरे सिपाहियों से उनके बारे में पूछ लेते
‘‘ये कहा पकडे गए है ? वेश्याल से ब्लाू फिलम देखते हुए या फिर जुए के आड्डे से ।’’
‘‘हाथियारों की खोज में आज रेलवे स्टेशन पर छापा मरा था ये सब वहीं पकडे गए ।’’
‘‘क़्या कुछ मिल ।’’
‘‘इच्छित तो कुछ भी नहीं मिल सका तलश जारी है । साहब अभीतक नहीं आए है आए तो पता चलेगा । खबर सही थी या गलत और छापे से कुछ प्राप्त भी हुआ है या नहीं ।’’
जैसे जैसे समय बीत रहा था उसके दिल की धडकने बढती जा रही थी, आशोक की स्थिति और आधिक खराब थी उसके चेहरे पर उसके मन के भाव उभर रहे थे । हर शण ऐसा अनुभव होता था जैसे वह अभी चकरा कर गिर जाएगा उसे आनुमन था जिन बातों की कल्‍पना से वह डर रहा है उनके बारे में आशोक के भाय कुछ ज्यादा ही होगें उसे कम से कम इस बात का तो इत्मीनान था कि तलशी में उसके पास से कुछ नहीं निकल है इसलिए ना पुलिस उस पर कोई आरोप लगा सकती है और ना हाथ डाल सकती है परंतु मुसीबत यह थी वह आशोक के साथ गिरपक़्तार हुआ है । आशोक पर जो भी आरोप लगाया जाएगा उसे उस आरोप में बराबरी का साथी सिद्ध किया जाएगा ।
कभी कभी उसे क्रोधआ जाता ।
आखिर हमें किस आरोप में गिरपक़्तार किया गया है ? किस आरोप में हमरे साथ #ूकर आपराधियों सा अपमान जनक व्यवहांर किया जा रहा है ?
घंटो से हमें यहां बिफ़्कर रखा गया है हमरे पास से तो कोई आपात्तिजनक वस्तु भी बरामद नहीं हुई है और वह छुरियों का सेट वह तो घरेलू उपयोग की वस्तु है उन्‍हे अपने पास रखना, या कहीं ले जाना आपराध है ? आशोक उन छारियों से कोई हत्या, मरपीट, दंगा, पकसाद करना नहीं चाहता था वह तो उन्‍हे अपने घर, घरके इस्तेमल के लिए ले जा रहा था ।
परंतु वह किससे ये बातें कहें, किसके सामने अपने निरपराध होने की स फाई पेश करें । यहां तो मुंह से आवाज भी निकलती है तो कभी उत्तर में गालियां मिलती है तो कभी घूसे । इस संकट से किस प्रकार मुएिक़्त पाए दोनों अपनी अपनी तौर पर सोच रहे थे ।
जब उन सोचों से घबरा जाते तो धीरे धीरे एक दूसरे से कानों में बातें करने लगते ।
‘‘आनवर अब क़्या होगा?’’
‘‘कुछ नहीं होगा आशोक तुम धैर्य रखो हमने कुछ नहीं किया है’’
‘‘फिर हमे यहां क़्यो बिफ़्कर रखा गया है हमरे साथ आदी मुजारिमें सा व्यवहांर क़्यों किया जा रहा है ?’’
‘‘यहां के तौर तरीके ऐसे ही है अभी तक तो हमरा केस किसी के सामने गया भी नहीं ।’’
‘‘मेरा साल स्थानिय विधायक का मित्र है उसे पकोन करके सारी बातें बता दूंगा वह हमें आकर इस नरक से निकाल ले जाएगा ।’’
‘‘पहली बात तो यह है ये लेग हमें पकोन करने ही नहीं देंगे थोडा धैर्य रखो । इन्सपेक़्टर के आने के बाद क़्या परिस्थितीयां सामने आती है उसके बाद इस विषय पर विचार करेंगे.....’’
‘‘इतनी देर हो गई है घर ना पहुंचने पर पत्‍नी चिन्तित होगी...’’
‘‘मेरी भी यही स्थिती है । एक दो घंटे लेट हो जाता हूं तो वह घबरा जाती है । इन लेगों का कोई भारोसा नहीं कुछ ना मिलने पर भी किसी भी आरोप में फंसा देंगे ।’’
‘‘अरे सिर्फ पैसे खाने के लिए यह सारा नाटक रचा गया है’’ बाजू में बैठा एक आदमी बोल । ‘‘कडकी लगी होगी किसी आपराधी से हपक़्ता नहीं मिल होगा या उसने हपक़्ता देने से इन्कार किया होगा, उसके विरूद्ध तो कुछ कर नहीं सकते, उसकी भरपाई के लिए हम शरीपकों को पकडा गया है ।’’
‘‘तुम्‍हारे पास क़्या मिल? उसने पलटकर उस व्‍यक्ति से पूछा ।’’
‘‘तेजाब की बोतल’’ वह आदमी बोल । ‘‘उस तेजाब से मैं अपने बीमर बाप के कपडे धोता हूं जो कई महीनें से बिस्तर पर है उसके बीमरी के किटाणू मर जाए । उनसे किसी को हानि ना पहूंचे इसलिए डाक़्टर ने उसके कपडे इस ॠसिड से धोने के लिए कहा है । आज एसीड समप्त हो गया था मेडिकल स्टेर से एसीड खरीद कर घर जा रहा था, मुझे क़्या पता था उसके कारण इस संकट में फंस जाऊंगा । वरना घर के समीप की मेडिकल स्टोर से एसीड खरीद लेता।’’
‘‘ऐ क़्या खुसर पुसर चालू है’’ उनकी कानाफूसी सुनकर एक सिपाही दहाडा तो वे सहमकर चुप हो गए ।
मस्तिष्‍क में फिर आशंकाए सिर उठाने लगी । यदि आशोक पर कोई चार्ज लगाकर उसे गिरपक़्तार कर लिया गया तो वह भी बच नहीं पाएगा । उसे आशोक की सहायता करनेवाल उसका साथा करार दिया जाएगा । वही आरोप उस पर लगाना कौनसी बडी बात है । पुलिस उनपर आपराध मढकर आदालत में भेज देगी आदालत मे उन्‍हे स्वंय को निरपराध सिद्ध करना होगा और इस #िकया में कई वर्ष लग सकते है । सालों आदालत कचेरी के चक़्कर इस कल्‍पना से ही उसे झुरझुरी आ गई । फिर लेगों को क़्या जवाब देंगे । किस किसको अपने निर्दोष होने की कहानी सुनाएंगे । यदि पुलिस ने उनपर कोई आरोप लगाया तो मामला सिर्फ आदालत तक सीमित नहीं रहेगा पुलिस उनके बारे में बढा चढाकर उनके आपराधों की कहानी आखबारों में छपाएगी ।
आखबार वाले तो इस तरह की कहानियों की ताक में रहते है...
‘‘दो सपेकद पोशों के काले कारनामें’’
‘‘एक आफिस में काम करने वाले दो क़्लार्एक आतंकवादियों के साथी निकले ।’’
‘‘एक बदनाम गैंग से संबंध रखने वाले दो गुंडे गिरपक़्तार’’
‘‘दंगा करने के लिए हाथियार ले जाते दो गुंडे गिरपक़्तार’’
‘‘शहर के दो शरीपक नागारिक का संबंध एक आतंकवादी संघटना से निकल’’
इन बातों को सोच सोचकर वह अपना सिर पकड लेता था ।
जैसे जैसे समय बीत रहा था उसकी हालत खराब होती जा रही थी उसे उन विचारों से मुएिक़्त पाना काफ़्नि हो रहा था ।
रात ग्यारह बजे के समीप इन्सपेक़्टर आया । वह क्रोधमें भारा था ।
‘‘नालयक, पाजी, हरामी साले झूठी सूचनाएं देकर हमरा समय बर्बाद करते है । सूचना थी कि आतंकवादी रेलवे स्टेशन से हाथियार ले जा रहे है कहा है आतंकवादी....? कहा है हाथियार...?’’
‘‘चार घंटे रेलवे स्टेशन पर दिमग पकोडी करनी पडी .... रामू यह कौन लेग है?’’
‘‘साहब इन्‍हे रेलवे स्टेशन पर शक में गिरपक़्तार किया है ।’’
‘‘एक एक को मेरे पास भेजो ष ’’
एक एक आदमी इन्सपेक़्टर के पास जाने लगा और सिपाही उसे बताने लगा कि उसे किस लिए गिरपक़्तार किया गया है
‘‘इसके पास से तेजाब की बोतल मिली है’’
‘‘साहब वह तेजाब घातक नहीं था, उससे मैं अपने बीमर बाप के कपडे धोता हूं । वह मैंने एक मेडिकल स्टोर से खरीदा था । उसकी रसीद मेरे पास है जिस डाक़्टर ने यह लिख कर दिया है उसके लेटर भी मेरे पास है । यह किटाणू नाशक तेजाब है बर्फ के समन ठंडा’’ वह आदमी अपनी स फाई पेश करने लगा ।
‘‘जानते हो तेजाब लेकर लेकल ट्रेन में यात्रा करना आपराध है’’
‘‘मुझे पता है, परंतु इस तेजाब से आग नहीं लगती है’’
‘‘ज्यादा मुंह जोरी मत करो तुम्‍हारे पाससे तेजाब मिल है हम तुम्‍हें तेजाब लेकर लेकल ट्रेन में यात्रा करने के आरोप में गिरपक़्तार कर सकते है ।’’
‘‘अब मैं क़्या कहूं साहब’’ वह आदमी विवशता से इन्सपेक़्टर का चेहरा तकने लगा ।
‘‘ठीक है तुम जा सकते हो.... परंतु आइंदा तेजाब लेकर लेकल ट्रेन में यात्रा नहीं करना...’’
‘‘नहीं साहब अब ऐसी गलती दोबारा कभी नहीं होगी’’ कहता वह आदमी अपना सामन उफ़्कर तेजी से पुलिस स्टेशन के बाहर चल गया । अब आशोक की बारी थी ।
‘‘हम दोनों एक एंकपनी के वि#की विभाग में काम करते है ये हमरे कार्ड है... ’’ कहते आशोक ने अपना कार्ड दिखाया । ‘‘मैंने घर के उपयोग के लिए यह छुरियों का सेट खरीदा था और उन्‍हे लेकर घर जा रहा था आप स्वयं देख लिजिए ये घर के उपयोग होने वाली छुरियां है ।’’
‘‘साहब इनकी धार बहुत तेज है’’ सिपाही बीच में बोल उठा ।
इन्सपेक़्टर एक एक छुरी उफ़्कर उसकी धार परखने लगा ।
‘‘सचमुच इनकी धार बहुत तेज है एक ही वार से किसी की जान भी जा सकती है ।’’
‘‘इस बारे में मैं क़्या कह सकता हूं साहब’’ आशोक बोल । एंकपनी ने इतनी तेज धार बनाई है एंकपनी को इतनी तेज धारवाली छुरियां नहीं बनानी चाहिए ।’’
‘‘ठीक है तुम जा सकते हो’’ इन्सपेक़्टर आशोक से बोल और फिस उससे संबोधित हुए ।
‘‘तुम’’
‘‘साहब यह इसके साथ था’’
‘‘तुम भी जा सकते हो... लेकिन सुनो....’’
उसने आशोक को रोका ‘‘पूरे शहर में इस प्रकार की तलशियां चल रही है यहां से जाने के बाद संभाव है इन छुरियों के कारण तुम लेग कहीं और धर लिए जाओ’’
‘‘नहीं इन्सपेक़्टर साहब, अब मुझमें इन छुरियों को घर ले जाने की हिममत नहीं है मैं इसे यहीं छोड जाता हूं ...’’
आशोक की बात सुनकर सिपाही और इन्सपेक़्टर के होठों पर विजयी मुस्कान उभर आई । दोनों अपने अपने ब्राीपककेस उफ़्कर जब पुलिस स्टेशन के बाहर आए तो उन्‍हे ऐसा अनुभव हो रहा था जैसे उन्‍हे नरक से रिहाई का आदेश मिल गया है....। द द

अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल 09322338918

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