Tuesday, March 23, 2010

Hindi Short Story By M.Mubin

कहानी
दलदल पर टिकी छत
लेखकः- एम मुबीन



दलदल पर टिकी छत
तीन दिनों में ही पता चल गया कि उसे मगन भाई ने कमरा किराए पर न हीं दिया कमरा किराए
पर देने के नाम पर फ़्ग लिया है ।
अब सोचता है तो स्वयं उसे अश्चर्य होता है । उससे इतनी बडी भूल किस तरह हो गई । बस कुछ
देर के लिए वह उस बस्ताी में अया मगन भाई ने उसे अपनी बंद चाल का कमरा खोल कर
बताया । 10 बाय 12 का कमरा था । जिसके ए क कोने में ए क छोटा सा किचन टेबल बना हुअ
था । उससे लग कर ए क तंग सा बाथ रूम ! जिसे वहा की भाषा में मोरी कहा जाता था । कमरें
में ए क दरवाजा था जो तंग सी गली में खुलता था दो खिडाएि कयां थीं जिन के कारण हवा
ओर प्रकाश का अच्छा प्रबंध था । फर्श पर रफ लादी थी, दिवारों का पलस्तर जगह जगह से
उखडा हुअ था । पलस्तर सिमेंट का था । छत पतरे की थी । गली के दोनों ओर कच्चे झोंपडों का
सिलासिला था जो दूर त क फैला हुअ था। बीच से ए क गंदी नाली बह र ही थी जिससे गंदा
पानी उबल कर चारों ओर फैल रहा था । जिसकी र्दुगंध से मस्तिष्क क फटा जा रहा था ।
मगनभाई कि उस चाल में सात, अठा कमरे थे । उसके मस्तिष्क क ने तुरंत उसे निर्णय लेने के
लिए विवश कर दिया ।
उसे इस शहर में इतने कम दामों में इतना अच्छा कमरा किराए पर न हीं मिल स कता । इस
शहर में इससे अच्छे कमरे की अशा रखना बेकार की बात थी ओर वह तुरंत कमरा किराए पर
लेने के लिए तैयार हो गया ।
दूसरे दिन उसने पच्चाीस हजार रूपये डिपाजिट के रूप में अदा किए । मगन भाईने तुरंत किराए
के करारनामें के कागजात हस्ताक्षार करके उसे दे दिए। बिजली ओर पानी का अपनी तौर पर प्रबंध
करने के बाद उसे किराए के रूप में मगनभाई को तीनसौ रूपया महिना देने थे । किराए का करार
केवल 11 म हीनों का था परंतु मगनभाई ने वादा किया था वह 11 म हीनों के बाद भी उससे
कमरा खाली न हीं कराएगा । वह जबत क चाहे उस कमरे में रह स कता है । यादि वह क हीं
ओर इससे अच्छे कमरे का प्रबंध कर लेता है तो मगनभाई उसे उसके डिपाजिट की रा शि वापस
कर देगा ।
उस शाम वह अपने मित्र के घर से अपना थोडा सा सामान ले कर अपने मित्र ओर उसके घर वालों
को अलाविदा कह कर अपने नए घर में अ गया ।
दो तीन घंटे तो कमरे की सफाई में लग गए ओर शेष ए क घंटा सामान को कमरे में सजाने में
... !
कमरे में बिजली का प्रबंध था इसालिए सिफ बलब लगाना पडा ।
कमरी की सफाई से वह इतना थका गया था कि उस रात वह बिना खाए पिए ही सो गया ।
सवेरे नित्य के समान छ बजे अंख खुली तो वह स्वयं को ताजा अनुभव कर रहा था । पानी अया
था घर के सामने ए क सरकारी नल पर ओरतों की भीड थी ।
‘‘पानी का प्रबंध करना चाहिए !’’ उसने सोचा । परंतु पानी भरने के लिए घर में कोई बर्तन न हीं
था । चहल कदमी करते वह अपने घर से थोडी दूर अया तो उसे ए क किराने की दुकान दिखाई
दी । उस दुकान पर लटके पानी के केन देख कर उसकी बांछे खिल गई । पानी के केन खरीद कर
वह नल पर अया ओर नंबर लगा कर कतारमें खहा हो गया ।
नल पर पानी भरती ओरतें उसे विचित्र अंदाज से घूर कर अपसमें अंखों से ए क दूसरे को कुछ
इशारे कर र ही थीं ।
उसका नंबर अया तो उसने पानी का केन भरा ओर अपने घर अया।
स्नान करके उसने कपडे बदले । वह घर में नाश्ता न हीं बना पाया था नाश्ता बनाने के लिए उसके
पास अवश्य क सामान न हीं था ।
किसी होटल में नाश्ता करने के बारे में सोचते हुए वह घर से चल दिया।
सोचा नाश्ता करने त क अफिस जाने का समय हो जाएगा उस दिन वह अपने अप को बडा
प्रसन्न, चुस्त ओर तरो ताजा अनुभव कर रहा था ।
ए क अभास बार बार उसके भीतर करवटें ले रहा था कि अब वह इस शहर में बेघर न हीं है अब
इस शहर में उसका अपना घर भी है । उसकी अपनी छत भी है जिसके नीचे वह अराम कर स
कता है ।
कल त क यह एहसास उसे कचो कता था इस शहर में उसके पास ए क अच्छी नौ करी है परंतु
उसके पास रहने के लिए ए क घर, सिर छिपाने के लिए ए क छत न हीं है । वह दूसरे की छत के
नीचे शरण लिए हुए है । उस छत की शरण कभी भी उसके सिर से हट स कती है ।
उसे अपनी योग्यता के अधार पर उस शहर में नौ करी तो मिल गई थी, परंतु उसके सामने सबसे
बडी समस्या सिर छिपाने की थी । उस शहर में ना तो कोई उसका रिश्तेदार था ओर ना ही कोई
पारिचित ।
उसने नौ करी ज्वाईन तो करली परंतु अवास की समस्या उसके सामने किसी दानव के समान मुंह
फाड कर खडी हो गई ।
कुछ दिनों के लिए उस समस्या का हल उसने ए क होटल में किराए का कमरा ले कर ढूंढ लिया ।
परंतु कुछ ही दिनों में उसे अनुभव होने लगा उसे जितना वेतन मिलता है उस वेतन में ना तो वह
उस होटल में रह स कता है ओर ना खा पी स कता है ।
उसने दूसरे सहारे की तलाश शुरू की ओर उसे ए क होस्टल में सिर छिपाने का स्थान मिल गया ।
दो चार म हीने उसने होस्टल में निकाले परंतु ए क दिन वह घोर सं कट में पंकस गया । ए क
दिन पुलिस ने होस्टल पर छापा मारा ओर होस्टल के सारे निवासियों को गिरपक़्तार कर लिया ।
होस्टल से पुलिस को माद क पदार्थ मिले थे । उस होस्टल में कुछ गुंडा तत्व माद क पदार्थो का
कारोबार करते थे ।
बडी मुशि कल से वह स्वयं को पुलिस के चंगुल से छुडा सका ।
वह ए क बार फिर बेघर हो गया था । वह अपने लिए किसी छत की तलाश कर रहा था कि
अचान क उसकी मुलाकात अपने ए क पुराने मित्र से हो गई ।
वह मित्र उसे बहुत दिनों बाद मिला था उस मित्र का उस शहर में ए क छोटा सा कारोबार था ।
उसने जब उस मित्र के सामने अपनी समस्या रखी तो उसने बडे अपनत्व से उसके सामने प्रस्ताव
रखा कि जब त क उसका कोई प्रबंध न हीं हो जाता है चाहे तो वह उसके घर में रह स कता है
जब प्रबंध हो जाए तो चले जाना ।
उसे उस समय अपना वह मित्र ए क देवता के समान प्रतीत हुअ ।
वह अपने उस मित्र के घर रहने लगा ओर साथ ही साथ अपने लिए कोई कमरा भी ढूंढने लगा ।
शहर में किराए से मकान मिलना मुशि कल था ओर मकान खरीदने का उसमें सामर्थ न हीं था ।
जो मकान किराए पर मिल रहे थे उनका किराया ही उसके अधे वेतन से ज्यादा था । उस पर
डिपाजिट की भारी रा शि की शर्त....
कुछ दिनों बाद थ क कर उसने सोचा उसे ऐसे क्षेत्र में मकान तलाश करना चाहिए जहां मकानों के
दाम कम हो भले ही उस क्षेत्र का स्तर उसके स्वभाव अनुसार ना हो उसे इन बातों से क़्या लेना
देना था । उसे तो केवल रात में सिर छिपाने के लिए ए क छत चाहिए थी ।
दिन भर तो उसे उस छत से कुछ लेना देनी न हीं था क़्योंकि दिन भर तो वह अफिस में रहेगा ।
उसे ए क इस्टेट इजंट ने मगनभाई से मिलाया । मगनभाई ने उसे बताया बस्ताी में उनकी ए क
चाल है । उस चाल में ए क कमरा खाली है वह कमरा वह उसे पच्चाीस हजार रूपये डिपाजिट
पर दे स कता है ।
‘‘ठी क है मगनभाई मै डिपाजिट का प्रबंध करके अपसे मिलता हूं’ कह कर वह चला अया ओर
पैसों के प्रबंध में लग गया ।
इतने पैसों का प्रबंध बहुत काठिन काम था । अपने शहर जा कर उसने दोस्तों, रिश्तेदारों से कर्ज
लिया, घर के गहने, बँ क में रख कर कर्ज लिया ओर डिपाजिट का प्रबंध करके वह वापस अया
ओर मगनभाई से मिला । मगनभाई ने उसे कमरा दिखाया । उसने कमरा पसंद करके पैसे
मगनभाई को दे दिए ओर अपनी नई छत के नीचे चला अया ।
शाम को अपनी जरूरत की चीजों ओर सामान से लदा जब वह बस्ताी में अया तो अपने घर के
पास प हूंच कर उसके पैर धरती में गढ गए । गली में चारों ओर पुलिस फैली हुई थी ।
‘‘ क़्या बात है भाई,’’ उसने ए क व्यक्ति से पूछा । ‘‘यह गली में पुलिस क़्यों अई है ? क़्या हुअ है
?’’
‘‘ओर क़्या होगा ? दारू के अड्डे पर झगडा हुअ, झगडे में चा कू चल गया ओर ए क अदमी टप
क गया......’’ कहता वह अदमी अगे बढ गया ।
‘‘तो इस स्थान पर शराब का अड्डा भी है’’ सोचता वह अगे बढा । अपने रूम के दरवाजे पर पहं
ुच कर उसने सामान अपने पैरों पर रखा ओर कमरे का दरवाजा खोलने लगा ।
सामान कमरे में रख कर मामले का पता लगाने के लिए बाहर अया तो तब त क पुलिस जा चुकी
थी ओर लाश भी उठाई जा चुकी थी । असपास के लेग उस बारे में बाते कर रहे थे ।
‘‘अज तो पुलिस ने अड्डा बंद कर दिया है कल फिर चालू हो
जाएगा ।’’
‘‘यह अड्डां कहा है’’ उसने पूछा तो लेग उसे सिर से पैर त क देखने लगे ।
‘‘बाबू किस दुनिया में हो जिस चाल में तुम रहते ड़ों उसी में तो यह शराब का अड्डा है ।’’
‘‘मेंरी चाल में शराब का अड्डा’’ अश्चर्य से वह उछल पडा।
‘‘हा ना केवल शराब का, बालि क ए क जुए का अड्डा भी है । ए क
कमरें में माद क पदार्थ बि कते है ओर दूसरे को कमरों में धंदा करने वालियां
रहती है ।’’
यह सुनते ही उसकी अंखों के सामने तारे नाचने लगे ।
उसकी चाल में जुए, शराब ओर माद क पदार्थ बेचने वालों के अड्डे है यहा वेशाए रहती है ओर
अब वह भी उसी चाल में रह रहा है ।
उस दिन तो उसे केवल यह पता चला कि वह कैसी जगह रहने के लिए अया है परंतु दो चार दिनों
में यह पता चल गया कि वहा रहना कितना बडा प्र कोप है ।
लेग बेधड क उसके कमरें में घुस अते ओर उससे तरह तरह की फरमाईशें करने लगते
‘‘ए क बोतल चाहिए’’
‘‘जरा ए क अफू की गोली देना’’
‘‘ए क चरस की पु डिया चाहिए’’
‘‘ए क गर्द की पु डिया चाहिए’’
‘‘चंदा को बुलाना अज उसका फुल नाईट का रेट देगा’’
वह सब सुन कर अपना सिर प कड लेता ओर उस व्यक्ति को प कड के घर बाहर निकाल देता ओर
उसे बताता कि उसकी इ च्छित वस्तु उसे कहा मिल स कती है ।
क़्योंकि इस बीच उसे पता चल गया था कि कहा कौनसा धंदा चलता है ओर उस धंदे का मालि क
कौन है ?
कमरे का दरवाजा खुला रखना ए क सिर दर्द था इसालिए उसने कमरे के दरवाजे को हमेंशा बंद
रखने में ही खैरियत समझाी थी । परंतु दरवाजा बंद रखना ओर भी अधि क सिर दर्द था ।
दरवाजा जोरजोर से पाटी जाता जैसे अभी तोड दिया जाएगा । वह दरवाजा खोलता तो व ही प्रश्न
सामने होते थे जो दरवाजा खुला रखने पर अजनाबियों द्वारा घर में घुस कर पूछे जाते थे ।
वह सोचता वह अकेला है केवल रात को सोने के लिए यहा अता है तो उसकी यह हालत है यादि
उसका पारिवार इस कमरे में रह रहा होता तो ? इस कलपना से ही वह कांप उफ़्ता था ।
यहा उसके अकेले का रहना मुशि कल है तो वह भला यहा अपने पारिवार को लाने का किस तरह
सोच स कता है ?
हर दिन ए क नई कहानी, ए क नया हंगामा, ए क नई घटना सामने अती थी । शराबी जुअरियों
का अपसमें लडना तो ए क अम सी बात थी । ए क ग्राह क चंपा के घर में जाने के बजाए सामने
वाले रघु के घर में घुस गया ओर उसकी पत्नाी से छेडछाड करने लगा ।
परंतु इस छत के नीचे तो हर क्षाण अतं क में रह कर गुजारना है ।
इन बातों से घबरा कर उसने निर्णय ले लिया कि उसे यह घर छोड देना चाहिए जब त क किसी
ओर छत का प्रबंध न हीं हो जाता भले ही उसे बेघर रहना पडे परंतु इस प्र कोप ओर अतं क से
तो वह बचा रहेगा ।
वह सीधा मगनभाई के पास गया ओर बोला ‘‘मेंरा डिपाजिट वापस कर दिजिए मुझे अपके कमरे
में न हीं रहना है ?’’
‘‘अरे तुम ग्यारह म हीने से पहले वह कमरा किस तरह वापस कर स कते हो । हमारा ग्यारह म
हीने के किराए का एग्राीमेंट हुअ है । ग्यारह महिने से पहले तुम्हारा डिपाजिट किस तरह वापस
कर स कता हूं ।’’
‘‘तुम ग्यारह म हीने की बात करते हो मै उस स्थान पर ए क पल भी न हीं रह स कता अपनी
पूरी चाल तुमने, शराब, जुए, वेश्या के अड्डे चलाने वालों को किराए पर दे रखी है ओर व ही जगह
मुझ जैसे सज्जन व्यक्ति को भी धोखे से किराए पर दे दी । तुमहें ऐसा नीच काम करते हुए शर्म
अनी चाहिए थी । मेंरे बजाए किसी शराब, जुए वेश्या का अड्डा चलाने वाले को देते वह तुमहें
ज्यादा किराया देता ।’’
‘‘अरे भाई, उन लेगों को मौने किराए पर कमरे कहा दिए है । मैने उस जगह चाल बाई थी ओर
इस लालच में कमरे किराए पर न ही दिए थी कि मुझे ज्यादा डिपाजिट ओर किराया मिलेगा वे
गुण्डे बदमाश लेग ताले तोड कर उन कमरोंमें घुस गए ओर अपने काले धंदे करने लगे । मैने सिफ
ए क शरीफ अदमी को वहा वह कमरा किराए पर दिया था जो उस वातावरण को देख कर कुछ
दिनों में ही भाग गया । उस कमरे पर भी गुंडे कब्जा ना करले इसालिए वह कमरा मैने तुमहें
किराए पर दे दिया अब तुम भी उस कमरे को खाली करने की बात कर रहे हो अरे बाबा जाओ मै
वह कमरा तुमहें दे दिया हमेंशा के लिए दे दिया । मुझे उस कमरे का किराया भी न हीं देना ।
यादि तुम वह कमरा छोड दोगे, ओर मै तुमहें तुम्हारा डिपाजिट वापस दूंगा तो उस कमरे पर कोई
गुंडा कब्जा कर लेगा ।’’
मगनभाई की बात सुन कर उसका # कोध ठांडा पड गया । उसे लगा मगनभाई तो उससे अधि क
दया का पात्र है ।
‘‘मगनभाई, गुंडो ने तुम्हारी पूरी चाल पर कब्जा कर लिया ओर तुमने पुलिस में शिकायत भी न
हीं की ।’’
‘‘ शिकायत करके क़्या मुझे अपना जीवन गंवाना है ? वे सब गुण्डे लेग है उनके मुंह कौन लगेगा ।
पुलिस उनका कुछ न हीं बिगाडेगी । पुलिस उनसे मिली हुई है । शिकायत पर थोडी देर के लिए
उन्हें अंदर कर देगी बाद में अजाद हो कर वे मेंरी जान के दुश्मन बन जाएंगे इसालिए मैने यह
सोच लिया है कि वह मेंरी चाल है ही न हीं मुझे धंदे में घाटा हो गया है । देखो अगर तुम वहा
रहना न हीं चाहते हो तो किसी को भी वह कमरा अपना डिपाजिट ले कर किराए पर दे दो मै उसे
नया किराया नामा बना कर दे दूंगा ।’0ं
मगनभाई की बातें सुन कर वह चुपचाप वापस घर अ गया । उस रात उसे रात भर नीदं न हीं अई
। उसके सामने ए क ही प्रश्न था । वह वहा रहे या वहा से चला जाए ?
फिलहाल तो ऐसी पारि स्थिती थी वह उस स्थान से क हीं भी जा न हीं स कता था ओर वहा
रहना ए क प्र कोप था ।
परंतु वह इतना भी कायर न हीं था किस प्र कोप से भयभीत हो कर पलायन कर दे ।
उसने स्वयं को हर तरह की पारि स्थितियों का सामना करने के लिए तैयार कर लिया । उसे केवल
रात ही में तो उन मानासि क यातनाओ को झेलना पडता था । दिन में तो वह अफिस में रहता था

दिन में वहा क़्या होता है, या जो कुछ होता है उसे उन बातों से कुछ लेना देना न हीं था । परंतु
रात घर आने पर दिने में जो कुछ वहा हुअ है उसे सब मालूम पड जाता था ।
दो शराबियों ने उषा को छेडा ।
ए क गुंडे ने अशो क की पत्नाी की इज्जत लूटने की कोशिश की ।
गुंडो में जम कर मार पीट हुई कई घायल हुए अज गुंडो के ट कराव में पिस्तौल चल पडी । गोली
से कोई गुंडा घायल तो न हीं हुअ परंतु गोली सामने वाले लक़मण के लडके को जा लगी जिसे
अस्पताल ले जाया गया उसकी स्थिति नाजु क है ।
जो लेग उसे यह कहानियां सुनाते वह उनपर बरस पडता
‘‘ कब त क तुम लेग यह सब सहन करते रहोगे ? तुम शरीफ लेग हो, यह शरीपकों का मोहलला
है, गुंडो ने इस पर कब्जा करके शरीपकों को यहा रहने के लाय क न हीं रखा है । तुम चुपचाप
सब सहन करते रहे तो तुम लेगों के साथ भी य ही सब होने वाला है । यादि इससे मुक़्त चाहते
हो तो इसके विरूध ए क हो जाओ ओर इसके विरूध अवाज उठाओ... गुंडो ओर बदमाशों के विरूद्ध
पुलिस में शिकायत करो । तुम्हारी शिकायत पर पुलिस को कारवाई करनी ही पडेगी ओर यह सब
रू क जाएगा ।’’
‘‘जावेद भाई हम ये सब न हीं कर स कते’’ उसकी बातें सुन कर वे सहम गए । ‘‘यादि हमने ऐसा
किया तो संभव है पुलिस कारवाई करे, परंतु वह ज्यादा दिनों त क गुण्डों को ला कअप में न हीं
रख पाएंगे । पुलिस में शिकायत करने पर वह हमारे शत्रु बन जाएंगे ओर अजाद होते ही हमसे
बदला जरूर लेंगे। इसालिए हम सोचते है उन गुण्डों से क़्या उलझा जाए ? जो कुछ हो रहा है उसे
चुपचाप सहन करने में ही भलाई है ।’’
‘‘य ही तो अप लेगों की कमजोरी है । विरोध करने का ना साहस है ना शक्ति, जिससे गुंडो का
साहस बढता जा रहा है । विरोध न हीं कर स कते सब गलत सलत सहन कर लेगे ।’’ वह #
कोध में बोला ‘‘यादि मेंरे साथ ए क दिन भी ऐसा कुछ हुअ तो मै बिल कुल सहन न हीं करूंगा ।
जो मेंरे साथ ऐसी वेसी हर कत करेगा उसे मजा चखाउंगा....!’’
दूसरे दिन जब वह अफिस से अया तो उसे तीन चार गुंडो ने घेर लिया । उनकी सूरते ओर चेहरे
ही बता रहे थे वे गुंडे है ।
‘‘ऐ बाबू, क़्यों बे ! क़्यों बहुत बडा लीडर बनने की कोशिश कर रहा है ? बस्ताी वालों को हमारे
विरूध भडका रहा है तू नया नया है इसालिए तुझे हमारी ता कत का अंदाजा न हीं है । ये लेग
पुराने है इन्हें हमारी ता कत का पता है इसालिए ये कभी हमसे न हीं उलझते । अगर यहा रहना
है तो भलाई इसी में है कि तुम भी पुराने बन जाओ । हमारी शक्ति जान ले ओर हमसे मत उसझो
जैसा चल रहा है चलने दो... जो कुछ हो रहा है होने दो...’’ ए क गुंडा उसे घुरता बोला ।
‘‘दादा ! यह बातों से न हीं मानेगा ए क दो हड्डाी पसली टूटेगी तो सारी लीडरी भूल जाएगा ।
इसे अभी मजा चखाता हूं’ कहते ए क गुंडे ने अपनी हाकी स्टाी क हवा में लहराई ।
‘‘न हीं अज के लिए इतनी वा र्निंग का फी है ।’’ उस गुंडे ने हाकी वाले गुंडो को रोका ।
‘‘इसके बाद इसने हो शियारी की तो मेंरी ओर से इसकी चार हाड्डियां ज्यादा तोडना कहता वह
सब को ले कर चला गया... ।’’
वह सन्नाटे में अ गया । उसका सारा शरीर पसीने में भीग गया उसे ऐसा अनुभव हो रहा था जैसे
कई हाकी स्टाी क उसके शरीर से ट कराए है । उसका शरीर पीडा का पकोडा बना हुअ है ।
उसे रात भर नींद न हीं अई ।
अंखो के सामने गुंडो के चेहरे ओर कानो में उनकी वा र्निंग गूंजती र ही। यादि अज वे गुंडे हाथ
उठा देते तो वह किस प्रकार स्वयं को उनसे बचा पाता ?
उसके मस्तिष्क क में ए क ही बात च करा र ही थी जो अज टल गया वह कल हो भी स कता है

इससे बचने का ए क ही रास्ता है वह यहा चुपचाप अंखे बंद करके रहे। जो कुछ यहा हो रहा है
उससे अंजान बना रहे तो उसे कभी कोई खतरा न हीं होगा । परंतु वहा रहना भी तो किसी नर क
में रहने से कम न हीं था ।
अए दिन गुंडो के झगडे, फसाद, दंगा, शराबी, जुअरी, नशेबाज, लेगों का बेधड क घर में घुस
अना.... बदतमीजी से दरवाजा पीटना, बार बार पुलिस के छापे, छापों में गुंडे, बदमासों का नि कल
भागना शरीपों का प कडा जाना ।
बात बात पर चा कु, छुरी का चलना । असपास रहने वालों की पत्नाी, बहनों, मांओ से गुण्डों की
बदतमीजिया ।
वह सोचने लगा किसी से डिपाजिट ले कर यह कमरा उसे दे कर इस नर क से नि कल जाए फिर
सोचता वह अकेला इस नर क में न हीं रह पाता है कोई शरीफ, बाल बच्चे वाले को इस नर क में
डालना क़्या उचित होगा ?
उसकी अंतरअत्मा इसके लिए तैयार न ही होती थी ओर उसे उस छत के नीचे रहने के लिए स्वयं
से समझौता करना पडा .....! द द